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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३२६

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" कर लेंगे।" "सच पूछिए तो मैं भी दुरंगी चाल का शौकीन हूँ।” सवार ने एकदम अपना घोड़ा शर्माजी के घोड़े से सटा दिया। फिर सिर का कुल्लेदार साफा हटाकर खिलखिला कर हँस पड़ा। चण्ड शर्मा ने चमत्कृत होकर कहा, “अरे महता, तुम कहाँ? "चुप रहिए, और बातचीत घर में होगी।" और वे दोनों तेज़ चाल चलकर घर पहुँचे। चण्डशर्मा ने घर का द्वार बन्द करना चाहा, महता ने कहा, “तुर्की सवार को घर में घुसाकर द्वार बन्द करना ठीक नहीं है। मेरा घोड़ा पकड़ने को किसी को बुलाइए, वही द्वार की देखभाल कर लेगा। इस बीच हम बात चण्ड शर्मा ने ऐसा ही किया। दामो महता ने संक्षेप में सारा हाल सोमनाथ के पतन तथा गंदावा दुर्ग और खम्भात का सुनाया। चण्ड शर्मा ने सुनकर एक बूँद आँसू गिराकर कहा, “अब इस स्वांग का क्या अभिप्राय है?" “बन्दियों की रक्षा। इस समय बन्दियों की मुक्ति ही सबसे महत्त्व की बात है। एक लाख से ऊपर निरीह नर-नारी नारकीय वेदना भोग रहे हैं।" उन्होंने अपनी तलवार की कहानी चण्ड शर्मा को सुनाकर कहा, “इसकी बदौलत मैं नाना भेष धारण करके बाहर भीतर सर्वत्र जा सकता हूँ। और अमीर से सबसे बड़ा अनुरोध भी कर सकता हूँ। परन्तु मेरा आत्मसम्मान इसमें बाधक है। मैंने कभी उससे अनुरोध किया भी नहीं, करूँगा भी नहीं। अपनी बुद्धि-बल पर ही इस दैत्य का सर्वनाश करने की चेष्टा करूँगा।" "तो महता, अब हम तुम एक और एक ग्यारह हैं। चिन्ता न करो। इस गज़नी के दैत्य का गुजरात से निस्तार नहीं है। यहाँ वह चूहेदानी में चूहे की भाँति फँसा है।" “परन्तु चौलारानी?” महता ने शोकपूर्ण स्वर में कहा, “उसका क्या होगा?" “कौन, वह देवदासी?" “आप नहीं जानते, चौलारानी की दुर्भाग्य-कथा।” फिर संक्षेप में महता ने सब कथा कहकर कहा, “वह गुजरात की महारानी है। अमीर के हाथ उसका पड़ना बड़ा भारी दुर्भाग्य है, शर्मा जी।" “पर मुझे जो सूचना मिली है, उसके आधार पर वह अपनी वर्तमान स्थिति में बहुत खुश है। क्या उसने महाराज भीमदेव को एकबारगी ही भुला दिया?" "कैसे विश्वास करूँ? चौलारानी की भावुक प्रेम-भावना मैंने देखी है। महाराज के लिए उसका वैकल्य भी मैंने देखा है। मैं जानता हूँ, महाराज जब सुनेंगे, सहन न कर सकेंगे। पर यह हो क्या गया?” महता ने बेचैनी से कहा। परन्तु शोभना रानी के समर्थ-चक्र का वे दोनों गुजरात के कूटनीतिज्ञ चक्कर काटकर भी पार न पा सके। चण्ड शर्मा ने सखेद वाणी से कहा, “अब मैं इस सम्बन्ध में और भी छान–बीन करूँगा महता, वहाँ सभी दासियाँ मेरी विश्वास भाजन हैं। चौला रानी को प्रत्येक मूल्य पर अमीर के पंजे से निकालना होगा। और यदि वह धर्म-भ्रष्ट हुई है तो उसे दण्ड पाना होगा। यह गुजरात की रानी की मर्यादा का प्रश्न है, इसे यों ही नहीं जाने दिया जाएगा।" “निस्संदेह!” महता ने कहा। फिर दोनों ने आवश्यक परामर्श किया और महता उसी वेश में बाहर आकर धीरे-धीरे अमीर की छावनी की ओर चल दिए।