सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३३२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

मसऊद अमीर का बहुत मुंहलगा, ढीठ और प्रधान सहचर था। वह साहसिक योद्धा और अमीर का सम्बन्धी भी था। उसकी मर्यादा राजकुमार के रुतबे की थी। फिर भी अमीर ने मसऊद को क्षमा नहीं किया। उसने सब सेनापतियों, मन्त्रियों, दरबारियों और सिपाहियों के सम्मुख उस पर अभियोग उपस्थित किया। अमीर ने पूछा- “मसऊद, क्या यह सच है कि तूने उस औरत को बिना कसूर कोड़े लगवाए?" "हुजूर, उसने मेरी हुक्म-उदूली की।" "क्या तूने उसे छुआ? उस पर बदनज़र डाली।" “खुदाबन्द, वह एक काफिर कैदी औरत है।" “क्या अस्मतफरोश? क्या तूने उसके खानदान का पता लगाया?" “जी हाँ, वह खम्भात के बड़े सेठ की बेटी है।" "क्या उसकी शादी हो चुकी थी?" “जी।" “और उसका शौहर?" “वह शायद इसी पाटन का बाशिंदा है।" "तो तूने यह जानकर भी, कि वह दूसरे की औरत है, तूने उस पर बदनज़र डाली और उस पर हददर्जे की बेरहमी की।" मसऊद नीची नज़र किए थर-थर काँपता रहा। अमीर ने कहा, “जंग जंग है लेकिन बुग्ज़ की वहाँ गुंजायश नहीं, न बदनीयती की। खासकर जब एक ज़िम्मेदार सिपहसालार, बुग्ज़ रक्खे, पराई औरत पर बदनीयत रक्खे, उसपर ज़ालिमाना हमला करे, तो उसका क़सूर बहुत बढ़ जाता है। पर, मैं अमीर महमूद, खुदा का बन्दा - - वही कहूँगा, जो मुझे कहना चाहिए। और मैं हुक्म देता हूँ कि वह औरत अपने हाथ से इस बदबख्त मसऊद को नंगा करके सब सिपाहियों के रूबरू पचास दुर्रे लगाए और यह खोटा और बेईमान मसऊद अब से सिपहसालार नहीं, अदना सिपाही रहे।" अब अमीर ने कैदियों के सम्बन्ध की और बातों पर भी विचार किया। इतने बड़े कैदियों के काफले को इस बार विदेश ले जाकर बेचना उसे संगत नहीं प्रतीत हो रहा था। इस बार लौटने में उसे एक अतर्कित भीति की भावना का भान हो रहा था। फिर कैदियों में विद्रोह की, सामना करने की जो भावना उत्पन्न हो रही थी, और नगर में जो असन्तोष उत्पन्न हो रहा था इन सब बातों से उसके मस्तिष्क का संतुलन जाता रहा। इसी समय अवसर पाकर उसके वज़ीर अब्बास ने कहा, “हुजूर खुदावन्द, इसमें संदेह नहीं कि विदेश जाकर कैदियों को बेचने में अधिक कीमत मिलेगी, परन्तु यह वक्त ऐसा नहीं है कि सवा लाख कैदियों को इतनी दूर ले जाने की जोखिम उठाई जाए। फिर कैदी बगावत करने पर आमादा हैं, शहर में भी हवा खराब हो रही है, इसमें इन कमबख्त कैदियों में जो हरीफ हैं, उन्हें कत्ल कर दिया जाए और बाकी सबको उनके भाई-बन्दों में बेआबरू करके अपमानपूर्वक बेच डाला जाए।" इस पर महमूद ने कहा, “मैं महमूद खुदा का बन्दा वही कहूँगा जो मुझे कहना चाहिए। मैं हुक्म देता हूं कि वे सब बदबख्त कैदी, जो फसाद पर आमादा हैं, और जिन्होंने शाही हुक्म-उदूली की है, और जिन्होंने इस्लाम के बन्दों पर तलवार उठाई है, उनका कल