नगर-ढिंढोरा अनहिल्लपट्टन में ढिंढोरा फिर गया कि कल एक प्रहर दिन-चढ़े, गुनहगार कैदियों को मानिक चौक में कत्ल किया जाएगा। बाकी सबको गुलाम की भाँति नीलाम कर दिया जाएगा। यह भयंकर ढिंढोरा सुनकर अनहिल्लपट्टन में हाहाकार मच गया। लोग खाना- पीना भूल इस महा-विपत्ति की बात सोचने लगे। निरुपाय सब नगर-निवासी, नगर-सेठ मानिकचन्द शाह की ड्यौढ़ियों में पहुँचे और पुकार लगाई कि राजा हमें छोड़ चला। हम बिना राजा की प्रजा हैं। प्राचीन काल से नगर-सेठ इस देश का दूसरा राजा होता है। जब- जब प्रजा पर विपत्ति आती है, वह उसका प्रतिनिधि होकर राजा के पास जा पुकार करता है और प्रजा के दु:ख-दर्द की दाद देता है। नगर-सेठ मानिकचन्द शाह के पास चण्ड शर्मा का गुप्त सन्देश पहले ही पहुँच चुका था। उसने सब महाजनों और नगर के प्रमुख जनों को एकत्रित करके कहा, “यह बड़ी अनहोनी बात है कि हिन्दुओं की राजधानी में एक विदेशी राजा इस प्रकार आकर निरीह निर्दोष जनों को बिना विघ्न-बाधा के हनन करे। कैसे हम हिन्दू यह सब बैठे देखें? फिर आज उनके किए है, कल हमारी बारी है। भाइयो, जन्म-जन्म से हमने धन-संचय किया है। धन ही के कारण हमारी आवश्यकता है। इस समय चाहे हमारा सर्वस्व लुट जाए, लाख-करोड़ रुपया खर्च करना पड़े, परन्तु कसाई के हाथ से इन गरीब मनुष्यों के प्राणों की रक्षा तो करनी ही होगी। हमारे राजा यदि कर्मण्य होते तो हमारी यह दुर्दशा न होती। बिना स्वामी के प्रभु की भाँति आज यह गुजरात की स्वर्ग-सम राजधानी सूनी और शोभाहीन हो रही है। बिना राजा के प्रजा की रक्षा कौन करे?" सभा में कुछ लोग बोल उठे, “हमें अपने प्राणों की परवाह न करके महमूद की सेना पर टूट पड़ना चाहिए। जहाँ तक प्राण हैं, हम कैदियों पर आँच न आने देंगे।" मानिकचन्द शाह ने कहा, “आपका यह जोश-उबाल व्यर्थ है, आप ठाकुर हैं, आपको तलवार का आसरा है। पर जब राजा ही प्रजा को अरक्षित छोड़कर भाग निकला, तो आपकी दो-चार तलवारें हज़ारों राक्षसों का क्या कर सकती हैं। तलवार में पानी होता तो भला कहीं सोमनाथ पट्टन भंग होता? इन बातों को छोड़िए, जैसा समय है उसके अनुसार काम कीजिए। महमूद लोभी है, इसी से काम बन जाएगा। झुकने के समय झुकना और अकड़ने के समय अकड़ना राजनीति है। हमारी शक्ति नष्ट हो गई है, अत: अब हमें साम-दाम से इन राक्षसों से काम निकालना है। वह मनमाना दण्ड लेगा। यही न, सो रुपया हमारे हाथ का मैल है, आबरू गई सो गई। इसलिए, हमें सुलतान का मुँह रुपयों से भरना होगा। दूसरा कोई चारा नहीं है। यह देखो, चालीस गाँव के महाजन सब बन्दियों को छुड़ाने के लिए तन-मन-धन से तैयार हैं।" नगरसेठ की इस बात में सबने सहमति दिखाई। नगरसेठ मानिकचन्द शाह साथ में पाटन के सब नगर-महाजनों को तथा चालीस गाँव के महाजनों को संग ले सुलतान के पास
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