गया। सुलतान के वज़ीर अब्दुल अब्बास ने महाजनों का स्वागत किया और आने का कारण पूछा। मानिकचन्द शाह सेठ ने आने का अभिप्राय वज़ीर को कह सुनाया। सुनकर वज़ीर सुलतान के पास गया। अब्दुल अब्बास एक बुद्धिमान और विद्वान् वज़ीर था। उसने सुलतान से कहा, “हुजूर, शहर के महाजन-सेठ ड्योढ़ी पर यह अर्ज़ करने हाज़िर हुए हैं कि सब कैदियों को रिहाई मिले।" सुलतान की आँखों में अभी भी गुस्सा भरा था। उसने कहा, “यह कैसे हो सकता है! जिन कैदियों ने इरादतन मुसलमानों को मारा है, उन्हें कत्ल कर दो, बाकी सबको ऊँची बोली में नीलाम कर दो। यह तो हुक्म हो चुका है।" "ज़रूर हो चुका है खुदावन्द, और इससे कुछ रुपया खज़ाने में आ जाएगा। मगर हुजूर, रुपए से नेकनामी बड़ी चीज़ है। ये महाजन एक अच्छी रकम देने को यदि राज़ी हों, तो रुपया भी मिल जाए और हुजूर खुदावन्द की नेकनामी भी सलामत रहेगी।" "तब उन महाजनों को हाज़िर करो।” सुलतान ने हुक्म दिया। महाजनों ने सुलतान के सम्मुख आ सलाम किया। फिर मानिकचन्द शाह ने तनिक आगे बढ़कर कहा, “हुजूर, आप विजयी बादशाह है, आपकी ताकत का अन्त नहीं। हम महाजन लोग आपसे अर्ज़ करने आए हैं, मानना न मानना हुजूर के हाथ में है, हम लोग तो मालिक के सामने अर्ज ही कर सकते हैं। सुलतान ने कहा, “तुम्हारी अर्ज़ क्या है महाजनो।" मानिकचन्द शाह ने सिर झुकाकर कहा, “खुदावन्द, आप अच्छी तरह जानते है कि इन अभागे कैदियों का कोई कसूर नहीं है। यदि इनसें से किसी ने अपने बचाव के लिए कोई हरकत की हो, तो वह न्याय, इन्साफ की दृष्टि से क्षमा के योग्य है। फिर इनमें गरीब-बेबस औरतें, लड़कियाँ, नगर-निवासी लोग हैं। इन्होंने तो आपका सामना किया नहीं। फिर, उन्होंने बहुत बेआबरूई और कष्ट उठाए हैं, ये लोग सब गरीब प्रजाजन हैं, ये न शूरवीर हैं, न सिपाही। इसलिए नेकनाम सुलतान, आप उन्हें माफ करके उन्हें छोड़ दीजिए।" अमीर ने कहा, “महाजनो, ये गुनहगार कैदी काफिर हैं, इन्हें मारने में सवाब होता है, फिर इन्होंने हमारी फौज का सामना किया है। हमारे आदमियों को इजा पहुँचाई है। इसलिए हमने शरह की रू से इन्हें कत्ल करने और बेच डालने का हुक्म दिया है।" सेठ ने नम्रता से कहा, “आलीजाह, मालिक यदि रैयत को मारे तो फिर उसका बचाने वाला कौन है? आपके एक वचन से हज़ारों के प्राण बचेंगे, यह भी बड़ा भारी लाभ है।" "लेकिन बिना जुर्माना कैदी नहीं छोड़े जा सकते।" "खुदावन्द, गरीब कैदी कहाँ से जुर्माना अदा करेंगे? उनके पास खाने-पीने का भी ठिकाना नहीं। वे तो पहले ही लुटे-पिटे बैठे हैं। फिर हुजूर, उनका अपराध भी तो कुछ नहीं है। तो भी आपका इरादा दण्ड लेने ही का है, तो दिए बिना छुटकारा नहीं है, तब कृपा कर नाममात्र का दण्ड लेकर उन्हें छोड़ दीजिए।" अब्दुल अब्बास ने चण्ड शर्मा का इशारा पाकर कहा, “महाजनो, तुम व्यर्थ समय .
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