पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३४३

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चौलारानी नव किसलय-कोमल,कमल-किशोरी रूप-कौमुदी की मूर्त प्रतिमा चौलारानी आज अपने कोमल लाल चरण ऊबड़-खाबड़ भूमि पर रखती, ठोकर खाती, अंधकार में राह टटोलती भाग्य-दोष से उस अंधेरे भूगर्भ-मार्ग में निराशा के अंधकार में डूबती-उतराती थाकारमेंडूबती-उतराती चली जा रही थी। आज न उसका कोई रक्षक था, न सहायक। नंगी तलवार उसकी कोमल कलाई पर भार थी और उत्फुल्ल अरविन्द के समान उसके नेत्र रोते-रोते फूल गए थे। काले घंघुराले बाल, जिनमें कभी मोती गूंथे जाते थे, धूल में भरकर उलझ गए थे। और नीलमणि की कंठी से कभी का सुशोभित कंठ धूल और गन्दगी से मलिन हो रहा था। बिम्बाधर रूखे, मुख-चन्द्र राहुग्रस्त-सा और सुषमा का आगार उसका नवल गात्र एक सूखे झाड़-सा प्रतीत हो रहा था। वह साहस करके आगे बढ़ती ही चली गई। और जब वह सुरंग के उस पार पहुँची तो उसने देखा, उस वीरान जंगल में आदमी की परछाई भी नहीं थी। वह सुरक्षा की अभिलाषिणी थी। वहाँ पशु और उनसे भी अधिक दुर्दान्त नर-पशुओं के आक्रमण से वह शंकित थी। वह चाहती थी कि शीघ्र उसे महाराज के सान्निध्य में पहुँचने की कोई राह मिल जाए। वह सीधी नदी के किनारे-किनारे चलती चली गई। भूख, प्यास और थकान से वह बेदम हो रही थी। सामने ही निर्मल नीर नदी में बह रहा था। पर उसने उसकी और आँख उठाकर भी नहीं देखा, वह सीधी बढ़ती चली गई। परन्तु उसे बहुत अधिक नहीं चलना पड़ा। सामने अमराई के उस पार एक छोटा- सा गाँव था। चौलारानी धीरे-धीरे आँचल में लाज समेटे गाँव की ओर चली। उसने देखा, गाँव के छोर पर ही एक जीर्ण शिवालय है, उसी के पास पुजारी का टूटा-सा घर है। वह चुपचाप घर की देहरी पर जा खड़ी हुई। वृद्ध पुजारी ने भीतर से निकलकर कहा- "कौन हो तुम?" “एक असहाय दुखिया स्त्री हूँ, आप देवता के पुजारी हैं, ब्राह्मण हैं, क्या आप आश्रय देंगे?" 'ब्राह्मणी हो?" “न, क्षत्रिय हूँ।" ब्राह्मण सोच में पड़ गया। चौला ने कहा, “आपको कष्ट नहीं दूंगी। देव-सेवा का मुझे अभ्यास है। मैं देव-सेवा करूंगी, भोजन के लिए भी धन मेरे पास है, आपको भार नहीं होगा।” उसने पाँच स्वर्ण-मुद्रा आँचल से निकाल कर पुजारी के सम्मुख चरणों में रख दीं। पुजारी ने क्षण भर विचार किया, एक बार उसके पीले सूखे मुँह को देखा, फिर स्वर्ण-मुद्राएँ हाथ में उठाकर कहा, “इन्हें आँचल में बाँध लो बेटी। और किसी से कहना मत, कि तुम्हारे पास सोना है। घर में अकेली ब्राह्मणी है। जवान बेटा अभी सोमतीर्थ में देवार्पण हो गया, इससे उसका मिज़ाज ज़रा खराब हो गया है। बकझक बहुत करती है, सो उसका कुछ ख्याल मत करना। आओ, भीतर आ जाओ। तुम कहाँ से आ रही हो?"