भाग रही थी। और अमीर उसे अपनी झोंक में खदेड़े लिए जा रहा था। परन्तु न जाने कहाँ से अनगिनत योद्धा छोटे-छोटे काठियावाड़ी घोड़ों पर निकल-निकलकर अमीर की पीठ पर घाव कर रहे थे। इस प्रकार से भायातों की सैन्य उसे अंजौर तक धकेलती चली गई। यहाँ उसकी सेना अनेक दलों में बिखर गई और घिर गई। अब अंजौर में स्थित नई सेना ने धंसारा करके चारों ओर अमीर की सेना को घेरकर समेटना प्रारम्भ कर दिया। साक्षात् यम की डाढ़ में जाने की अपेक्षा अमीर ने शौर्य दिखाकर जूझ मरना ठीक समझा। उसने अपने साहसी योद्धाओं को ललकारा, परन्तु परिणाम यही हुआ कि केवल एक हज़ार सवारों के दल के साथ, वह भायातों की सैन्य-पंक्ति को भेदकर तीर की भाँति माण्डवी तक चला गया। अब वह निश्चय ही पथ-भ्रष्ट था अपनी राह से सैकड़ों कोस दूर। अपनी सेना से दूर और अपने मन्तव्य-गन्तव्य से दूर। अब उसके बचने की एक ही आशा थी, कि कोई छोटा-मोटा किला दुर्ग उसके हाथ लग जाए तो वह उसमें पनाह ले और फिर अपनी बिखरी हुई सेना का संगठन करे। मांडवी पर उसने दृष्टि डाली। पर मांडवी सर करना उसके बूते की बात न थी। उसके साथ केवल एक हज़ार योद्धा थे। उसने निरुपाय हो मुन्द्रा की राह पर अश्व छोड़ा। आशा और निराशा के बीच उसका हृदय झूल रहा था। उसने सुना था, मुन्द्रा में ठाकुर नहीं हैं, महाजनों का पंचायती राज्य है। वहाँ का किला समुद्र-तट पर खूब दृढ़ है। इसी से वह तेज़ी के साथ मुन्द्रा की ओर चला।
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