पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३५७

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था। हथियार से सजकर नगरकोट पर चढ़ जाएँ। आज सभी को हथियार लेना पड़ेगा।" सेठ ने कहा, "अभी एक क्षण में मैं चला।" थानेदार नगर-द्वार की ओर बढ़ा। वहाँ सिरबन्दी के सब सिपाही शहर के दरवाजे बन्द कर तीर-कमान और तलवारों से लैस अमीर के सत्कार को सन्नद्ध खड़े थे। थानेदार एक वृद्ध राजपूत था। वह जन्म से कच्छी था। उसके मुख पर सफेद गलमुच्छा और माथे पर सफेद पाग थी; कमर में कच्छी बागा, बागे पर लम्बी तलवार, और फैंटे में रक्खी कटार। उसने किले की राग पर चढ़कर देखा। दूर धूल उड़ती आ रही है। देखते-ही देखते सवारों के हथियार धूप में चमकने लगे। सबके आगे अरबी घोड़े पर सवार अमीर महमूद इसी बीच अपने-अपने तीर-कमान, पत्थर और तलवार, जो जिसके हाथ लगा, लिए सैकड़ों नगर-निवासी किले की रांग पर चढ़ आए थे। थानेदार ने कहा, “भाइयो, घबराना नहीं, और व्यर्थ अपने तीर नष्ट मत करना। अमीर भायातों की सेना से ताड़ा हुआ मुन्द्रा के किले की शरण पाने आ रहा है। उसके साथ केवल हजार सिपाही हैं। आज उसकी खैर नहीं है। ज्योंही मेरा तीर छूटे, सब एक साथ तीर छोड़ना- पहले कोई न छोड़े।" सबने थानेदार की बात गाँठ बाँध ली। हज़ारों आदमी साँस रोककर समय की प्रतीक्षा करने लगे। सैकड़ों तीर, धनुषों पर चढ़े छूटने को तैयार थे। अमीर की सेना निकट आई और थानेदार का तीर सनसनाता छूटा। साथ ही सैकड़ों तीरों की बौछार पड़ी। अमीर की बढ़ती हुई सेना रुक गई। तीरों से बिंधकर घोड़े हवा में उछलने और हिनहिनाने लगे। सैनिक चीत्कार कर उठे। अमीर घोड़ा उछालता आगे बढ़ा। उसने तलवार ऊँची करके कहा, “मैं गज़नी का सुलतान तुम्हें हुक्म देता हूँ कि दरवाज़े खोल दो और किला हमारे ताबे करो।" “किन्तु यहाँ गज़नी के सुलतान का अमल नहीं है।" थानेदार ने हँसकर कहा। “क्या तुम्हीं मुन्द्रा के थानेदार हो?" "नामदार अमीर ने ठीक पहचाना।" "तो तुम्हें जानना चाहिए कि तमाम गुजरात पर हमारा अमल है और हम गुजरात के बादशाह हैं। दरवाज़े खोल दो, मैं तुम्हें कच्छ का राज्य दूंगा।" “दरवाज़ा एक शर्त पर खोला जा सकता है।" “वह क्या है?" “यह कि गुजरात के बादशाह सुलतान महमूद अकेले हथियार रखकर शहर में दाखिल हों। फौज सब बाहर रहे।" “सुलतान ने होंठ चबाए। क्रोध से गरजते हुए उसने कहा, “मैं मुन्द्रा में एक भी आदमी ज़िन्दा नहीं छोडूंगा।" “यह बात पीछे-देखी जाएगी। अभी तो गज़नी के अमीर को अपनी जान की खैर मनानी चाहिए।"