पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३५८

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इसके साथ ही एक बाण अमीर की पगड़ी को उड़ाता हुआ दूर निकल गया और उसके साथ ही सैकड़ों तीर उस पर बरस पड़े। क्रोध में अधीर हो अमीर ने अपनी सेना को फाटक तोड़ने का आदेश दिया, सैकड़ों सवार फाटक पर पिल पड़े, पर ऊपर से पत्थर, तीर और बौं की मार से मर-मरकर वे ढेर होने लगे। मध्याह्न काल आ गया। हवा में धूप और गर्मी भर गई। मुन्द्रा के फाटक पर दोनों ओर ज़ोर-आज़माई हो रही थी। इसी समय दूर से धूल के बादल उमड़ते दीख पड़े। अमीर ने भयभीत होकर इस नई विपत्ति को देखा, जिसका सामना करने की इस समय उसमें सामर्थ्य न थी। उसने जल्दी-जल्दी आक्रमण से विरत हो अपनी सेना को व्यवस्थित कर पीछे बाग फेरी। पीठ पर तीरों के घाव खाते अमीर के सैनिक लौट चले। परन्तु यह सब व्यर्थ था। उसकी सेना को चारों ओर से नए शत्रुओं की दृढ़ टुकड़ी ने घेर लिया। अमीर एक दुर्भेद्य चक्र के बीच फँस गया। चारों ओर से मारता-काटता, वार करता यम के अवतार की भाँति घुड़सवारों का यह फुर्तीला दल अमीर को दलमल करने लगा। ये सवार काठियावाड़ी मज़बूत टटुंओं पर सवार, फुर्तीले और अद्भुत थे। वे चारों ओर से घेरा समेटते-समेटते इस प्रकार सिमट गए कि अमीर के सैनिकों को हिलने-जुलने का भी स्थान न रहा। इस दल का नायक एक ठिगना, मज़बूत और तेजस्वी योद्धा था। उसका रंग काला, आँखें लाल, चेहरे पर रगें भीगती हुईं। भुजदण्डों पर उछलती हुई मछलियाँ हाथ में रक्त से भरी नंगी तलवार। महमूद घोड़ा बढ़ाकर सामने आया। उसने क्रोध और दर्के से कहा- "तू कौन है?" “मैं पारकर का तहार मियाना हूँ। डाका मारना मेरा खानदानी पेशा है। तू कौन है?" “मैं गज़नी का सुलतान महमूद हूँ।' "तब तो बहार-ही-बहार है। गज़नी का सुलतान है, मैंने सुना है, महमूद के आदमी खूब मज़बूत और घोड़े बहुत बढ़िया हैं।" “तूने मेरी राह क्यों रोकी है?" “वाह, यह भी पूछने की बात है? यह तो मेरा पेशा है। हमारा भाग्य-जो तू हमारे हाथ चढ़ गया। घोड़े हमारे काम आएँगे और तुझे और तेरे आदमियों को रन में बेचकर अच्छे दाम उठाऊँगा।" “तू डाकू है? तुझे शर्म नहीं?" "अरे महमूद, हम तुम दोनों डाकू ही हैं। कल तेरा दांव था, आज मेरा है। तैने दुनिया लूटी है। आज तू मेरे हाथ चढ़ा है। झट-पट ताबे हो आ। नाहक खून-खराबी न कर।" "तू क्या मुझे पकड़ना चाहता है?" "बेशक, पर दाम चुकाया कि छुट्टी।" “कितना दाम?" “तीस लाख कोरी से कम नहीं। अकेले तेरे दाम। तेरे इस रेवड़ के अलग।"