दो घड़ी विश्राम हुआ। और एक पहर रात गए अमीर ने रणथम्भी माता का उलंघन कर मध्य रन में प्रवेश किया। सबसे आगे सज्जनसिंह सांड़नी पर सवार तारों की छांह में तारों को देखता-परखता चला। उसके पीछे, अमीर के सब तीरन्दाज, पैदल- पदातिक, भारवाही ऊँट, खच्चर और घोड़े। उनके पीछे कीमती ऊँट पर जालीदार जरदोज़ी की काठी पर शोभना गुलाम अब्बास की कमान में पाँच सौ सवारों से घिरी हुई। इसके बाद अपने अरबी घोड़े पर सवार अमीर महमूद अपने बिलोची सवारों और ऊँटों के साथ। इसके पीछे कोतल हाथी-घोड़े-ऊँट और पानी-रसद। रात बीती, दिन आया। विश्राम हुआ, फिर चले। दूसरा दिन, तीसरा दिन, चौथा दिन, अमीर की सेना रन में घुसती चली गई। परन्तु अब सूर्य का असह्य उत्ताप झुलसाने लगा। घोड़े सब बेदम हो गए। पदातिक सिपाही लड़खड़ाने लगे। प्यास लगने पर बहुत कम पानी मिलता। घोड़े गिरकर मरने लगे। पैदल बेहोश होने लगे। ऊँटनियाँ हवा में मुँह उठाकर बलबलाने लगीं। आकाश पर अंधड़ छा गया। ऊँटनियां इधर- उधर भागने लगीं। पर सज्जन आगे ही बढ़ता चला गया। रेत के पर्वत इधर-से-उधर उड़ने लगे और हाथी, घोड़े, ऊँट उसमें डूबने लगे। अनगिनत बवंडर मनुष्यों और घोड़ों को लेकर घुमा-घुमाकर फेंकने लगे। हवा अधिकाधिक गर्म होने लगी। सैनिकों ने वस्त्र उतारकर फेंक दिए। रेत के बड़े-बड़े स्तम्भ बनने और आकाश तक उड़ने लगे। सारी सेना की शृंखला बिगड़ गई। प्रबल वायु के थपेड़ों में बहकर हाथी, घोड़े, ऊंट, सब उजड़ चले। अमीर ने तलवार ऊँची करके चीखकर कहा, “तू कौन है शैतान?" “मैं भगवान् सोमनाथ का गण हूँ। देख, वह भगवान् सोमनाथ का तृतीय नेत्र।" अमीर की तलवार उठी की उठी रह गई। एक भयानक काले बवंडर ने उसे घेर लिया। उसका घोड़ा उसी में चक्कर खाता हुआ उसे ले उड़ा। ऊँटनियाँ पूँछ उठा-उठाकर भागने लगीं। हाथी चिंघाड़ने लगे। घोड़े दो पैरों पर उछलने लगे। पैदल सवार सभी इस जलती-भुनती रेती में समाधिस्थ होने लगे। इसी समय प्रलय के समान घोर हुंकार भरते, शत-सहस्र सूर्यों की भाँति चमकते हुए रेत के पर्वताकार गोले आकाश में उड़-उड़कर भूमि पर फटने और अपनी चपेट में जीवित-अजीवित सभी को समाधिस्थ करने लगे। ऐसा प्रतीत होता था कि प्रलय काल आ पहुँचा है। अब वे रेत के टीले निस्सीम अग्नि-स्फुलिंग की भाँति मंडलाकार घूमते, हाथी, घोड़े, ऊंट मनुष्य सबको समूचा निगलते हुए, हू हू-धू धू करके प्रलय-गर्जन करने लगे। इस प्रकार वह प्रलय का अंधड़, अप्रतिरथ विजेता महमूद की विजयिनी समूची सेना को अपने में लपेट, इस विनाश की दूत राशि को, विनाश के आँचल में लपेटकर विलीन हो गया। रुद्र का तृतीय नेत्र अपना संहार-कृत्य पूरा करके निमीलित हो गया।
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