पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३७५

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आधार तीस बरस पूर्व! अब से लगभग तीस वर्ष पूर्व, मैंने प्रथम बार गुजरात की यात्रा की। गुजरात के प्रभु सोमनाथ और वहाँ के शैवतत्त्व के सम्बन्ध में मैंने बहुत उत्सुकता से उन दिनों अध्ययन किया था। गज़नवी महमूद का सोमनाथ पर आक्रमण उन दिनों मेरे अध्ययन का रोचक और आकर्षक विषय था। और तभी मेरी इच्छा ‘सोमनाथ' नामक एक उपन्यास लिखने की हुई। परन्तु स्कूल के इतिहास की पाठ्य-पुस्तकों में सोमनाथ के आक्रमण की जो ज़रा-सी चर्चा थी, उसे छोड़कर अन्यत्र कहीं भी इस विषय का कोई अच्छा साहित्य मुझे हिन्दी में नहीं मिला। धीरे-धीरे मेरी व्याकुलता बढ़ती गई और मैं सोमनाथ के इस आक्रमण के सम्बन्ध से अधिक-से-अधिक जानने को अधीर हो उठा। मजे की बात यह थी कि मेरे मुँह से यह सुनकर, कि मैं सोमनाथ पर एक उपन्यास लिखना चाहता हूँ, एक प्रकाशक ने अपने अधिकार के बल से उसका विज्ञापन भी छाप दिया, और सुना कि आर्डर भी बुक करने आरम्भ कर दिए। इसके बाद तो उसके तकाज़ों ने नाक में दम कर दिया। प्रथम तो मुझे इस सम्बन्ध में इतिहास की अधिक जानकारी नहीं। दूसरे ऐसी लोक-विश्रुत घटना को वैसे ही प्रभावशाली ढंग से चित्रित करने की कल्पना-शक्ति और साहस नहीं। मैं उपन्यास लिखता कैसे? धीरे-धीरे विलम्ब होता गया, दिन बीतते गए। अंग्रेजी इतिहासकारों के लिखे कुछ टूटे-फूटे विवरण मुझे मिले, पर वे यथेष्ट न थे। कुछ लोग तो यह भी कह देते थे कि यह घटना ही कपोल-कल्पित है। गुजराती साहित्य तथा गुजराती संस्कृति से मेरा थोड़ा लगाव भी है। इसका श्रेय मैं अपने दिवगंत मित्र हाजी मुहम्मद अल्लारखिया शिवजी को, जो गुजराती भाषा के 'बीसवीं सदी' पत्र के यशस्वी और जनूनी सम्पादक थे, को देना चाहता हूँ, जिन्होंने बरबस मेरा मन गुजराती-साहित्य के कोमल भावुक भाव-चित्रों पर मोहित कर दिया। सन् 1914 से 20 तक मैं बम्बई में रहा। तभी मुझे इस मित्र का अलभ्य सहवास मिला। इसने मेरे उपन्यास 'हृदय की प्यास' का गुजराती अनुवाद किया था। पीछे 'हृदय की परख' का भी गुजराती-अनुवाद हुआ। इस प्रकार मैं गुर्जर साहित्य और संस्कृति के निकट आया। बम्बई में निवास करने से मैं गुजराती पढ़ने और समझने भी लगा। परन्तु सोमनाथ के प्रति मेरी आस्था तब हुई, जब दैवदुर्विपाक में फंसकर मुझे बम्बई छोड़नी पड़ी। कंचन की सघन वर्षा डूबकर छूछा हाथ लिए घर लौटना पड़ा। मुंशी का प्रथम दर्शन सम्भवत: सन् 36 में मैं काफी अरसे के बाद फिर बम्बई गया। और इस बार इरादा कर लिया कि सोमनाथ के सम्बन्ध में गुजराती-साहित्य में जो कुछ भी मिल सकेगा, बटोर लाऊँगा। परन्तु मेरी आशा फलवती न हुई। एक-दो पुस्तकें मिलीं। पर प्रामाणिक जानकारी