पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

राजी किया जाता था। रुद्रभद्र का शरीर जैसा बेडौल और भयावह था, चेष्टाएँ भी वैसी ही थीं। वह वातावरण ही ऐसा था कि मूर्ख और विद्वान, धनी और गरीब, सब कोई इस पाखण्ड पर विश्वास करते थे। त्रिपुरसुन्दरी का पट बन्द होना तथा वाम पूजनविधि भंग होना, बड़ी भारी और भयानक घटना समझी गई। मन्दिर में आचार के नाम पर अनाचार करने वाले मुस्टंडों का तो सारा मौज-शौक ही समाप्त हो गया। मद्य-माँस का प्रसाद, सुन्दरियों का आलाप, सहवास और देवी की आड़ में होने वाले सब पाखण्ड-कृत्य रुक गए। एक मुस्टंड अवधूत ने कहा, “बाबा ! ऐसा तो पचास वर्ष में एक दिन भी नहीं हुआ।" बाबा ने एक हुंकृति की। कहा कुछ नहीं। उसके होंठ हिलते रहे। एक भयानक वेशधारी अघोड़ी ने खड़े होकर महालय की ओर हाथ उठाकर उच्च स्वर से कहा, "सर्वज्ञ ने पाप किया है, सर्वज्ञ का पतन हो गया है !" दो-एक अवधूतों ने चिमटे उठाकर कहा, "बाबा, आज्ञा कीजिए। हम सर्वज्ञ के पास जाएँ, पट खुलवाएँ, भोग-अर्चना विधि सम्पन्न करें, नहीं तो सर्वज्ञ का सिर फोड़ डालें।" "नहीं रे नहीं, महामाया अब मन्दिर में नहीं हैं।” रुद्रभद्र ने वज्र-गर्जना की भाँति कहा। फिर कुछ अस्फुट मन्त्र ज़ोर-ज़ोर से उच्चारण कर फट-फट् कहा। अवधूत ने काँपते-काँपते कहा, 'महामाया कहाँ है बाबा ?” "विनाश को निमन्त्रित करने गई हैं। उधर, उधर देखो !” उसने उन्मत्त की भाँति सुदूर मरुस्थली की ओर हाथ उठाए, और उन्मत्त की भाँति हँसने लगा। फिर वह जड़वत् समाधि-मग्न हो गया। उपस्थित जनों में भीति की भावना फैल गई। बहुत लोग उस रात नहीं सोए। बहुतों ने उपवास किया। कापालिक और अघोरी सैकड़ों-पचासों की संख्या में आ-आकर, पंचाग्नि तपते हुए रुद्रभद्र के चारों ओर नरमुण्ड ले-ले नाचने और नर-कपाल में भर-भरकर मद्य पीने लगे। उन्हें देख भयभीत हो नगरवासी भाग गए। परन्तु प्रभात होने पर लोगों ने देखा कि रुद्रभद्र अपने आसन पर नहीं है। आसन सूना है, पंचाग्नि जल रही है, पर तपस्वी नहीं है। यह देखते ही एक दूसरा कोलाहल उठ खड़ा हुआ। किसी ने कहा, “रुद्रभद्र बाबा आकाश-मार्ग से महामाया के साथ 'विनाश' को आमन्त्रित करने गए हैं।” किसी ने कहा, "बाबा, अन्तर्धान हो गए।” किसी ने कहा, "हमने उन्हें उस तारे के निकट उड़ते देखा है।" बहुत मुँह, बहुत बात। समस्त देवपट्टन इन सब घटनाओं से हिल गया। अचल रहे केवल गंग सर्वज्ञ। उनके पास आकर बहुत जनों से बहुत भाँति अनुनय किया, क्रोध किया, भय दिखाया, परन्तु सर्वज्ञ ने कोई उत्तर नहीं दिया। उनके इस गूढ़ मौन से भी लोग चिन्तित हो गए। सम्पूर्ण देवपट्टन में एक अशुभ वातावरण व्याप्त हो गया।