वह मनुष्यों का शत्रु, खूनी और डाकू है। अन्ततः वह मनुष्य है, यह मैं कैसे भूल सकता था। फिर, वह मनुष्य भी साधारण नहीं-महान् विजेता, योद्धा और नियन्ता। अतः उसमें जो धर्षणा के योग्य था, उसकी धर्षणा करके, उसमें पूजार्ह था, उसकी मैंने पूजा की। और ऐसा करके मैंने अपने साहित्यिक धर्म का पालन किया। जब मैंने उसे दामो महता से पराजित कराया, तभी मैंने उसके सच्चे शौर्य और मानवत्व को स्पर्श किया। इसके बाद रमादेवी की बातचीत में, शोभना की मुलाकात में, सुर-सागर के तट पर, तथा पीर की दरगाह में उसके सम्पूर्ण मानवतत्त्व को कोमल तथा भावुक प्यार-पीर और आत्मार्पण से ओत-प्रोत करके उसे शोभना के आँचल में बाँध दिया। अब आप ही देख-समझ लें कि वह शोभना को लिए जा रहा था, या शोभना उसे। अत्याचारों के रेखाचित्र मुस्लिम संस्कृति की खूनी, जिद्दी और साम्प्रदायिक कट्टरता-मूलक प्रवृत्ति पर मैं जितना गुस्सा प्रकट कर सकता था, कर चुका। पराजितों पर, कैदियों पर मैंने अत्याचारों के जी भरकर रेखाचित्र खींचे। परन्तु इस सारे रक्तपात और मानव-विरोधी भावनाओं का मूल रूप जो महमूद था, उसे तो मैं वैसा ही दुर्दान्त, रक्तपिपासु, न छोड़ सकता था। उसे मैंने जो एक सच्ची मानवता का बाना पहना कर गज़नी वापस भेजा है, शोभना के कल्याणांचल में बाँधकर, इसे आप इतिहास-विरोधी तत्व कह सकते हैं। पर मैंने तो उपन्यास में केवल इतना ही इतिहास का सहारा लिया है, कि सोमनाथ पर महमूद का यह आक्रमण हुआ। और यह उसका अन्तिम आक्रमण था। इसी सोमनाथ और महमूद के इतिहास-मूल को लेकर मैं फिर स्वच्छन्द अपनी उपन्यास की मूर्तियों को गढ़ने लगा। और मेरा साहित्यरस सूख न जाए, इसी का चिन्तन मैंने अन्तत: किया। केवल यही नहीं, कि आदर्शवादिता की झोंक में मैंने ऐसा किया। मैं मानववादी भी तो हूँ, मनुष्य को मैं दुनिया की सबसे बड़ी इकाई समझता हूँ। मैं मनुष्य का पुजारी हूँ और मनुष्य मेरा देवता है। परन्तु 'मनुष्य','मानवता' नहीं। मानवता का मैं पुजारी नहीं। मानवता मानवीय श्रेष्ठ गुणों की भावना की प्रतीति कराती है। जो लोग मानवता के प्रेमी हैं, वे धीर, वीर, उदात्त और सच्चरित्र महापुरुष के पूजक है। किन्तु मैं नहीं। मैं केवल मनुष्य का पुजारी हूँ। वह मनुष्य, जो घृणित, पापी, अपराधी, खूनी, डाकू, हत्यारा, लुटेरा, कोढ़ी, व्यभिचारी, गन्दे रोगों से आक्रान्त, मल-मूत्र से लथपथ या पागल है, वही मेरा देवता है। उसमें जो यह कलुष है उसका अपना नहीं है, नैसर्गिक नहीं है, उसपर ऊपर से लादा हुआ है। यह तो मेरा, पुजारी का काम है, कि उसे धो-पोंछकर, साफ-शुद्ध करके, पवित्र-पूजनीय बनाए और अपना सम्पूर्ण प्यार और सेवा उसे अर्पित करे, जैसे मल-मूत्र से लथपथ अपने बच्चे के प्रति माँ वहीं मैंने किया। सत्रह बार भारत को तलवार और आग की भेंट करने वाला, लाखों बन्दियों को निरीह पशुओं की भाँति की गज़नी के बाजारों में बेचने वाला, दुर्दान्त लुटेरा महमूद मेरे हाथ लग गया। गुस्से और विरक्ति से उसके सब कुकृत्य मैंने देखे। परन्तु उसका प्रच्छन्न मानव-तत्त्व भी तो मुझे देखना था। सो अवसर पाकर मैंने उसका सब कलुष धो-पोंछकर, उसे साफ-शुद्ध करके, एक कोमल भावुक, आकुल, आतुर प्रेमी बनाकर, प्रेम- करती है।
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