पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/४०६

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लाट पूँछ कुत्ते के समान है। इस लक्षण वाला हाथी जिस राजा के यहाँ रहेगा, उसका राज्य और घर नष्ट हो जाएगा। लाट देश के राजा ने जान-बूझकर शत्रुता से यह हथिनी भेजी है।" ऐसा कहकर चामुण्डराज ने पिता की आज्ञा लेकर वारप पर चढ़ाई की, और उसे मार डाला।30 द्वयाश्रय काव्य में तो यह लिखा है, पर 'प्रबन्धचिन्तामणि' में वारप को तैलंग का राजा और सुकृतसंकीर्तन में कान्यकुब्ज 31 का राजा लिखा है। परन्तु कीर्तिकौमुदी32 में उसे द्वयाश्रय काव्य की भाँति लाट देश का मन्त्री लिखा है। चाहे जो हो, परन्तु वारप का मूलराज या चामुण्डराज के हाथ से मारा जाना तो निश्चित ही है। परन्तु वारप के पौत्र कीर्तिराज और कीर्तिराज के पौत्र त्रिलोचनपाल का एक दानपत्र शक सम्वत् 972, विक्रम सम्वत् 1107 का मिला है।33 इससे तो यह प्रमाणित होता है कि उस काल तक वारप के वंशज पाटन के सोलंकियों के अधीन न थे। विक्रम सम्वत् 1030 में कल्याण के चालुक्य राजा तैलप ने राठौरों से लाट देश छीना। छीन कर अपने सेनापति वारप को दिया, वारप की मृत्यु विक्रम सम्वत् 1030 में हुई - या अधिक से अधिक 1050 के अन्तर्गत। पर देश पर अधिकार इसी के वंशजों का रहा। कुछ इतिहासकारों का मत है कि चामुण्डराज भोगी-विलासी, संगीत और ऐश- आराम में पड़ा रहने वाला राजा था। उसने अपनी बढ़ती उम्र में अपना सब राजकाज मन्त्रि-मण्डल को सौंप दिया था, और प्रजा की तरफ से बेखबर हो गया था। वह हृदय का कोमल और प्रेमी था, और स्त्रियों के साथ मौज-मज़े में अपने दिन काटता था। उसे गुस्सा भी जल्दी आता था। उसका हाथ खुला हुआ था। ज्यों-ज्यों उसकी उम्र बढ़ती गई, वह आलसी और कायर होता गया। अन्त में उसका काल मृत्युपर्यन्त वनवास के रूप में व्यतीत हुआ। वल्लभराज चामुण्डराज के ज्येष्ठ पुत्र वल्लभराज के विरुद · महाराजाधिराज-परमेश्वर- परमभट्टारक-राजमदनशंकर और जगज्फपन, जगत्कम्पन' मिलते हैं। पूर्वोक्त तीन विरुद तो सोलंकियों के कितने ही दानपत्रों में मिलते हैं। चामुण्डराय के राज्यच्युत होने पर वल्लभराज राजा हुआ। कुछ दिन बाद उसने मालव पर आक्रमण किया और चेचक से वहीं उसका देहान्त हो गया। प्रबन्धचिन्तामणि में लिखा है कि वल्लभराज ने पाँच महीने उनतीस दिन राज्य किया और दुर्लभराज ने बारह वर्ष। परन्तु वही आचार्य मेरुतुंग अपनी 'विचारश्रेणी' नामक पुस्तक में मूलराज के पीछे चौदह वर्ष तक वल्लभराज का और उसके बाद बारह वर्ष तक दुर्लभराज का राज करना लिखते हैं। इन्हीं आचार्य के मत से चामुण्डराज तेरह वर्ष, एक मास और चौबीस दिन राज कर चुका था। परन्तु मूलराज के पीछे तो चामुण्डराज का राजा होना गुजरात के इतिहास की सभी पुस्तकों में तथा ताम्र- पत्रों से भी प्रमाणित है। परन्तु वल्लभराज ने तो पूरे एक वर्ष भी राज नहीं किया। किसी- किसी ने तो राजाओं की नामावली में वल्लभराज का नाम ही नहीं लिया। विक्रम सम्वत् 1966 में वल्लभराज का देहान्त हो गया। वल्लभराज ने जब मालवा पर चढ़ाई की थी, तब वहां का राजा भोज था। परन्तु कुमारपाल-चरित की हस्तलिखित प्रति में उसका नाम मुंज लिखा है।सुकृतसंकीर्तन और