कीर्तिकौमुदी में मालव राजा का नाम ही नहीं दिया। परन्तु मुंज और सिन्धुराज दोनों ही वल्लभदेव के गद्दी पर बैठने के काल में मर चुके थे। वल्लभ पण्डित ने भोज-प्रबन्ध में सिन्धुराज का अपने छोटे भाई को राज्य देना और बालक पुत्र भोज को उसे सौंप देना लिखा है। परन्तु यह भ्रम है, मुंज के मारे जाने के बाद सिन्धराज मालवा का राजा हुआ, जिसका पुत्र भोज था। कुछ इतिहासकार वल्लभदेव को रंगीली प्रकृति का, शूरवीर और बात का धनी राजपूत कहते हैं। उसे विवेकी, वाचाल, निष्कपट और पवित्र मन का आदमी भी कहा गया है। वह अपने वचन का पालन करने वाला और मुसलमानों का विरोधी था। दुर्लभराज इस राजा का विरुद ‘परमभट्टारक', 'महाराजाधिराज' और 'परमेश्वर' मिलता है। द्वयाश्रय काव्य यह लिखता है कि दुर्लभराज के पास राजा महेन्द्र की बहिन दुर्लभदेवी के स्वयंवर का निमन्त्रण आया, जिससे वह अपने भाई नागराज के साथ स्वयंवर में गया। जहां अंगराज, काशीनरेश, चेदीश्वर कुरुराज, हूणाधिप मथुरेश आदि राजा आए थे। दुर्लभदेवी ने वरमाला दुर्लभराज को ही पहनाई। परन्तु महेन्द्र ने अपनी दूसरी बहिन लक्ष्मी का विवाह नागराज के साथ कर दिया। लौटते समय सब राजाओं से उनका युद्ध हुआ,और उसमें दोनों भाइयों ने उनको परास्त किया,और अनहिल्लवाड़ा में आ पहुंचें34 किन्तु स्वयंवर की यह कथा विश्वसनीय नहीं मालूम होती। ऐसा मालूम होता है कि रघुवंश में वर्णित इन्दुमती के स्वयंवर के वर्णन का अनुकरण करते हुए हेमचन्द्र ने अपने इस काव्य में यह प्रसंग लिख दिया है। फिर भी इतना तो माना ही जा सकता है कि महेन्द्र ने अपनी बहिन का विवाह दुर्लभदेव से किया होगा। परन्तु महेन्द्र कहां का राजा था, इसका स्पष्टीकरण हेमचन्द्र ने नहीं किया। लेकिन द्वयाश्रय काव्य का टीकाकार उसे मारवाड़ का राजा बताता है। सम्भवत: यही ठीक है। उस समय मारवाड़ में मुख्य राज्य नान्दौल के चौहानों का था और महेन्द्र नान्दौल पर चौहानों का राज्य स्थापित करने वाले राव लखनसिंह के छोटे पुत्र विग्रहपाल का बेटा था। ऐसा नान्दौल के चौहानों के दानपत्रों से प्रमाणित होता है। फार्बस की अपनी सम्पादित ‘रासमाला' में यह घटना बिल्कुल उलटी लिखी है। वह कहता है कि दुर्लभराज ने अपनी बहिन दुर्लभदेवी का विवाह मारवाड़ के राजा से किया, परन्तु गुजरात का कोई इतिहासकार इसका समर्थन नहीं करता। सम्भवत: फार्बस ने द्वयाश्रय काव्य के अभिप्राय को समझने में गलती की है। जयसिंह सूरि लिखता है कि न्यायी दुर्लभराज ने लाट के राजा को हराकर उसकी लक्ष्मी और जमीन छीन ली।35 इतिहास से प्रमाणित यह है कि दुर्लभराज के समय लाट देश का राजा सोलंकी वारप का पौत्र कीर्तिराज था। और उसके पीछे उसके पौत्र त्रिलोचनपाल तक के समय का दानपत्र उस समय के विक्रम सम्वत् 1075 तक का मिल चुका है। लाट पर राजा वारप के वंशजों का अधिकार था। सम्भव है कि दुर्लभराज ने लाट देश के उत्तरी अंश को राज्य के अधीन कर लिया हो। सोमेश्वर दुर्लभराज को अपने राज्य का रक्षक तथा परस्त्री और द्विजधन की ओर
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