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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/४१३

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रुपए खर्च किए थे। विक्रम सम्वत् 1568 में अनहिल्लवाड़े के जैन साधु मुनी लावय ने प्राचीन गुजराती भाषा में विमलप्रबन्ध नाम से विमलशाह का चरित्र-ग्रन्थ लिखा है। जिसके आधार पर कुछ बढ़ाकर सौभाग्य सुन्दर सूरि ने विक्रम सम्वत् 1574 में 'विमलप्रबन्ध' नामक संस्कृत ग्रन्थ की रचना की। ये दोनों ही ग्रन्थ विमलशाह के समय के लगभग 500 वर्ष पीछे लिखे गए। इनमें विमलशाह के सम्बन्ध में कुछ चमत्कारिक और अत्युक्तिपूर्ण बातें लिखी हैं, जो कि विश्वसनीय नहीं हैं। विमलप्रबन्ध में लिखा है कि आठवीं शताब्दी के अन्त में विमलशाह के पूर्वज नीन मन्त्री चानड़ा वंशी राजा वनराज के समय में अनहिल्लवाड़े में जा बसा। नीन का पुत्र लहिर प्रतापी हुआ, जिसको वनराज ने अपना दण्डनायक बनाया। वनराज के बाद के राजाओं के समय तक वह दण्डनायक बना रहा। लहिर का पुत्र वीर और वीर का पुत्र विमलशाह हुआ। वनराज ने विक्रम सम्वत् 821 से 882 तक राज्य किया। और उसके राजाओं के अतिरिक्त योगराज, रत्नादित्य, बैरीसिंह और क्षेमराज ने विक्रम सम्वत् 882 से 944 तक राज्य किया। विमलशाह विक्रम सम्वत् 1088 में विद्यमान था। विमलदेवशाह ने जो यह मन्दिर आबू में बनाया है, इसकी समता का कोई दूसरा देव-प्रासाद भारतवर्ष में नहीं है। तेजपाल का बनवाया हुआ नेमिनाथ का मन्दिर भी बहुत भव्य है, किन्तु विमलदेवशाह का यह मन्दिर उससे बढ़-चढ़कर है। फर्गुसन इसके विषय में कहता है कि वह इस मन्दिर में जो कि संगमरमर का बना हुआ है, अत्यन्त परिश्रम सहन करने वाले हिन्दुओं की टांकी से फीता-जैसी बारीकी के साथ ऐसी मनोहर आकृतियां बनाई गई हैं, कि उनकी नकल कागज़ पर बनाने को बहुत परिश्रम करने पर भी मैं समर्थ नहीं हुआ।62 टाड ने भी वहां के गुम्बज के विषय में कहा है, कि इसके चित्र बनाने में कलम थक जाती है। और अत्यन्त परिश्रम करने वाले चित्रकारों की भी कलम को महान श्रम करना पड़ेगा।63 गुजरात के इतिहास ‘रासमाला' के लेखक फार्बस ने भी इस मन्दिर की भूरि-भूरि प्रशंसा की है। विमलदेवशाह के इस अनुपम मन्दिर का कुछ भाग मुसलमानों ने तोड़ फोड़ डाला था। जिससे विक्रम सम्वत् 1378 में लल्ल और वीजड़ नामक दो साहूकारों ने सिरोही के महाराव तेजसिंह के राज्यकाल में इनका जीर्णोर्धार करवाकर ऋषभदेव की मूर्ति की स्थापना की। कर्नल टाड ने जोकि आबू पर चढ़ने वाले सबसे पहले योरोपियन व्यक्ति थे, उसे भारत का सर्वोत्तम प्रासाद कहा है, और कहा है कि आगरे का ताज ही उसकी कुछ समता कर सकता है। सपादलक्ष सपादलक्ष सांभर और अजमेर के राज्यों के अधीन सम्पूर्ण क्षेत्र का नाम था।64 विग्रहराज बीसलदेव सपादलक्ष देश का राजा था, ऐसा प्रबन्धचिन्तामणि में लिखा है। उस ग्रन्थ में सपादलक्षक्षितिपति अथवा उसके पर्यायवाची शब्दों का जो प्रयोग किया गया है, वह चौहान राजाओं का सूचक है। अजमेर बसाए जाने से पूर्व चौहानों की राजधानी शाकम्भरी थी। इसी से वे शाकम्भरीश्वर अर्थात् सम्भरीराव कहाते थे। अजयपाल ने अजमेर नगर बसाया, तब से वही राजधानी बना। परन्तु सब चौहान राजा नवरात्रि आते ही अपनी कुलदेवी शाकम्भरी की पूजा करने सांभर चले जाया करते थे।65