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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/४१४

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-काल में कंथा दुर्ग या कंथकोट का किला यह किला कच्छ राज्य के पूर्व बागड़ में एक पहाड़ी पर बना है। प्राचीन काल में यह अच्छी आबादी वाला स्थान था। यह सुरक्षित और सुदृढ़ किला है। विपत्ति-क गुर्जर राजाओं ने इस दुर्ग में बहुत बार आश्रय लिया था। 66 प्रभासपट्टन सोमनाथ की प्रसिद्धि के अनेक कारण हैं। प्रथम तो प्रभासपट्टन तीर्थ ही बहुत प्राचीन है। महाभारत-काल में यहीं पर यादवों का विग्रह और कूल-क्षय हुआ था। महाभारत काल के बाद, कृष्ण-वंश के अवसान के कारण तथा कृष्ण-भूमि द्वारका के निकट होने के कारण, वह आगे चलकर साम्प्रदायिक काल में प्रथम वैष्णवों द्वारा पूजित तीर्थ रहा होगा, जिस पर पीछे से शैव शक्ति का प्रवेश हुआ। प्रभास तो प्रथम ही सुपूजित तीर्थ था। फिर मध्यकाल में वहाँ सूर्य मन्दिर तथा जैन मन्दिरों के निर्माण होने से इस महातीर्थ की गणना और अधिक व्यापक हो गई और वह भारत का प्रसिद्ध तीर्थ हो गया। इसके बाद प्रसिद्ध मूर्तिभंजक महमूद के अन्तिम अभियान के कारण, जिसमें सोमनाथ का भंग हुआ, वह एक ऐतिहासिक महत्त्व धारण कर गया। इसके बाद अनेक मुसलमान बादशाहों ने मन्दिर का ध्वंस समय-समय पर किया, पर हर बार हिन्दुओं ने उसके ध्वस्त हो जाने पर फिर से उसकी स्थापना कर ली। लगभग चार सौ वर्ष तक इस महातीर्थ में हिन्दुओं और मुसलमानों में संघर्ष चलता रहा। अन्त में 15वीं शताब्दी में हिन्दुओं ने प्राचीन महालय के निकट ही एक नया मन्दिर बना लिया। सोमनाथ का प्राचीन महालय, जो बाद में मस्जिद के रूप में परिवर्तित कर दिया गया था, अब केवल खण्डहर ही रह गया। महमूद का अभियान महमूद ने गुजरात पर चढ़ाई तो अवश्य की और सोमनाथ को भंग भी किया, गुजरात और सोमनाथ को लूटा भी, फिर भी उसने अपनी सत्ता हिन्द में स्थापित करने की चेष्टा नहीं की। उसने बहुत-से प्रदेशों को सर किया, फिर भी उनमें सूबाओं द्वारा अपनी सत्ता जमाने का उद्योग उसने नहीं किया। वह एक साहसी योद्धा अवश्य था, परन्तु उसे साम्राज्य का शौक नहीं लगा, उसे तो सम्पत्ति की ही भूख थी। और यही कारण था कि सोमनाथ के पराभव होने के बाद गुजरात पर ऐसी भयानक विपत्ति आने पर भी समग्र गुजरात के जीवन का प्रवाह महमूद की पीठ फेरते ही पूर्ववत् चलता रहा। यह एक बड़े ही आश्चर्य का विषय था। वास्तव में वह युग ही दूसरा था। महमूद जिस ऊजड़ प्रदेश में रहता था, वहाँ अनन्त भू-विस्तार उसके अधीन था। इसलिए उसे धरती की भूख नहीं थी। अमर कीर्ति की लालसा थी - धन का लोभ था। कुछ इतिहासकार महमूद को धर्मान्ध कहते हैं। और उनका कहना यह है कि उसने सोमनाथ की मूर्ति भंग करने के लिए ही यह जिहाद का झण्डा उठाया था, परन्तु कुछ इतिहासकार उसे लुटेरा कहते हैं। सम्भवत: दोनों ही बातों में सत्य हो, और इन्हीं भावनाओं से प्रेरित होकर महमूद ने ऐसे भारी-भारी अभियान किए हों। फिर भी इतना तो