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पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/४२

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?" इसी समय कोई वस्तु सनसनाती उनके कान के पास से निकल गई। उन्होंने चौकन्ना होकर एक-दूसरे को देखा। "क्या तीर था?" “कहाँ ? दीख तो नहीं पड़ा।' वास्तव में तीर न था। सुलतान के हृदय में आशंका और भय ने स्थान किया। उसने कहा, “क्या लौट चलें?" “कहाँ, गज़नी ?" सुलतान लज्जित हुआ। उसने कहा, “अवश्य कोई शै हमारा पीछा कर रही है जो दीख नहीं रही।" इतना कहते ही कोई खिलखिलाकर हँस पड़ा। दोनों ने घोड़े घुमाए, चारों ओर देखा, पर कोई व्यक्ति नज़र न पड़ा। दोनों एक- दूसरे को देखने लगे। चारों ओर दूर-दूर तक सूने पहाड़ खड़े थे। दूर समुद्र गरज रहा था। आकाश में मध्याह्न का सूर्य तप रहा था। दोनों सवार दृढ़ता से तलवार हाथ में लिए आगे बढ़ते जा रहे थे। वे कुछ ही कदम आगे बढ़े थे, कि एक उन्मत्त के समान भीमकाय दिगम्बर पुरुष हाथ में एक भारी त्रिशूल लिए, जटाजूटधारी, भारी-भारी कदम रखता हुआ, कहीं से निकल आया और फिर उनके आगे-आगे चलने लगा। उसने उँगली के संकेत से उन्हें अपने पीछे-पीछे आने को कहा। दोनों में परस्पर दृष्टि-विनिमय हुआ और चुपचाप उसके पीछे चल दिए। सुलतान ने एक बार साहस करके पूछा, 'तू कौन है ?" पर उसने जवाब नहीं दिया। कुछ चलने के बाद, उसने उन्हें संकेत से घोड़ों से उतरने को कहा, और घोड़ों को लम्बी बागडोर में बांधने को संकेत किया। फिर वह पहाड़ी पर चढ़ने लगा। दोनों आगन्तुक पीछे-पीछे पहाड़ी पर चढ़ने लगे। वह तेज़ी से पहाड़ी पर चढ़ रहा था। दो घड़ी की चढ़ाई में तीनों टेकरी पर पहुँचे। यहाँ एक गुफा थी। बाहर से वह साधारण दीख रही थी, पर भीतर बहुत बड़ी थी। अमीर और उसके साथी ने उसके पीछे- पीछे गुफा में पैर रक्खा। भीतर जाकर जो देखा, देखकर दंग रह गए। भीतर बहुमूल्य कोमल उपाधान उपस्थित थे। कीमती कालीन बिछे थे। आराम और विलास की प्रत्येक वस्तु उपस्थित थी। उसने दोनों को बैठने का इशारा किया और भीतर घुस गया। जब फिर बाहर आया तो उसके हाथ में एक बड़ा-सा चाँदी का थाल था। वह उसने अगन्तुकों के सामने रख दिया। उन्होंने देखा, उसमें कई प्रकार के भुने हुए मांस और राजशाही पकवान थे। सब गर्म और ताज़े थे। यह देखकर दोनों यात्री आश्चर्य से एक-दूसरे का मुँह देखते रह गए। वह व्यक्ति फिर भीतर गया और ठण्डे पानी से भरी एक चाँदी की सुराही और वैसा ही सुवासित मद्य से भरा एक पात्र लाकर उसने अतिथियों के सामने रख दिया। फिर आशीर्वाद के ढंग पर दोनों के सिर पर हाथ ऊँचा करके कहा, “खा सुलतान और आराम कर। तब मैं बात करूँगा।" इतना कहकर और बिना उत्तर की प्रतीक्षा किए वह गायब हो गया।