अगम पथ पर 6 अघोर वन के अगम-पथ पर दो अश्वारोही तेज़ी से बढ़े चले जा रहे थे। दोनों सशस्त्र योद्धा थे, उन्होंने अपना अंग एक-एक काले लबादे में छिपा रक्खा था। दोनों की दाढ़ी हवा में हिल रही थी और चमकदार आँखें सावधानी से इधर-उधर देख रही थीं। अश्वारोहियों में एक तरुण, बलिष्ठ और तेजस्वी पुरुष था। पाठक उसे जानते हैं। यह छद्मवेशी सुलतान महमूद था। दूसरा पुरुष एक प्रौढ़, गम्भीर और लम्बा-पतला व्यक्ति था। वह बहुत कम बात करता था। अमीर इस व्यक्ति से आदरपूर्वक व्यवहार कर रहा था। यह अरब का प्रसिद्ध विद्वान् अलबरूनी था। दोनों धीरे-धीरे बातें कर रहे थे। बात अरबी भाषा में हो रही थी। अमीर ने कहा, “क्या ये भूत-प्रेत, पिशाच और देवता, जिनपर हिन्दू इस कदर विश्वास करते हैं, सच्चे हैं ?" "नहीं, यह सब कुफ्र है।" "फिर क्या कारण है कि ये लाखों-करोड़ों आदमी इन वाहियात झूठी बातों पर यकीन करते हैं ?" "उन्हें बचपन से ही यह तालीम मिलती है।" “तो हम जिस आदमी से मिलने जा रहे हैं, वह क्या हकीकत में कोई गैबी ताकत रखता है ?" “यह तो हम देखेंगे।" "मैं इसीलिए आपको साथ लाया हूँ। लोग कहते हैं, वह हवा में उड़ता है, गायब हो जाता है, और आज तक किसी ने उसे देखा नहीं है।" "लेकिन यह ज़मीन भी तो ऐसी है जहाँ इन्सान के कदम शायद पचासों बरस से नहीं पड़े। सामने ही लाखों आदमी रहते हैं, पर डर से यहाँ नहीं आते। अब हम देखेंगे कि हम पर क्या मुसीबत आती है।" 'और, जैसा कि कहा जाता है कि वह करामाती और जोरावर जिन है, यदि वैसा ही हुआ तो हमें मदद भी तो दे सकता है।" "लेकिन मैं ऐसी किसी करामात या गैबी ताकत का कायल नही हूँ।" "हज़रत ! यह तो अभी हमको देखना ही है।" “मगर छोटे गुसाईं ने कहा है, दर्शन होंगे। उस गैबी ताकत ने हमें बुलाया है। वह हमसे बात करेगा।" "तब देखा जाएगा।" इसी समय इन अश्वारोहियों को ऐसा प्रतीत हुआ कि कोई उनका पीछा कर रहा है। उन्होंने तलवार नंगी कर ली, अपने चारों ओर देखा, पर कुछ भी न दीख पड़ा। सुलतान ने कहा, “क्या कोई छिपकर हमारा पीछा कर रहा है ?" “हो सकता है, हमें होशियार रहना चाहिए।" "होशियार रहने से क्या, होगा, अगर कोई है तो जिन होगा! इन्सान यहाँ कहाँ
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