पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/५१

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आँखों में अंजन, दाँतों में मिस्सी, बालों में ताज़े फूलों का जूड़ा, पैरों में महावर, होंठों में पान और हाथों में मेहन्दी आठों पहर आप उसकी धज में देख सकते थे। विधि-निषेध करने पर, समझाने-बुझाने पर वह सबकी सुनी-अनसुनी करके नृत्य करने और हँसने लगती थी। उसे इस मुद्रा में देख कृष्णस्वामी आँखों में पानी भर आने पर भी हँस पड़ते थे। पर रमाबाई क्रोध से अपनी गोल-गोल आँखें खूब विस्तार में फैलाकर इधर-उधर घुमाने लगती थीं। शोभना को उसके पिता ने पढ़ाया-लिखाया था। वह कुशाग्र बुद्धि थी। गुस्सा उसे भी खूब आता था। गुस्सा आने पर वह माता-पिता किसी की भी आन नहीं मानती थी। सब मिलाकर वह एक सजीव ‘कनक-छुरी सी कामिनी' थी, अथवा फूलों से लदी-फदी एक डाल। रमाबाई शकुन-स्वप्न और सुहाग का बहुत विचार करती थी। शोभना उसकी इकलौती बेटी थी, यह तो ठीक है; पर विधवा होने के कारण वह प्रातः काल उठते ही उसका मुँह देखना अशुभ समझती थी। वह अपने सुहाग का जब शृंगार करती, तब भी वह विधवा का दर्शन नहीं करना चाहती थी। पर शोभना जैसे उसे चिढ़ाने के लिए उसकी आँखों के आगे आ ही जाती थी। माँ के क्रोध, फटकार पर वह मुँह चिढ़ाकर भाग जाती थी। वह कहती थी, “मुझे जब न देखना चाहो तो आँखें बन्द कर लिया करो।" अब प्रसंग आने पर अनुपस्थित बात भी कहनी पड़ी। बहुत दिन हुए, कृष्णस्वामी ने एक शूद्रा दासी को मोल खरीदा था। दासी युवती और सुन्दरी थी। सस्ती मिल गई थी। रमाबाई के लिए ही दासी खरीदी गई थी, पर रमाबाई उस दासी पर बहुत कड़ी दृष्टि रखती थी। कृष्णस्वामी जिस दिन उसपर कुछ कृपादृष्टि करते, उस दिन उसे आहार-भोजन मिलना भी दूभर हो जाता था। कृष्णस्वामी कभी बहुत छिपाकर भी बड़ी सावधानी से उस दासी की ओर देखकर हँसते या मुस्कराते तो वह भी रमाबाई की गोल-गोल आँखों से छिपता नहीं था। उस मुस्कराने का सांगोपांग मूल कारण रमाबाई को बताए बिना कृष्णस्वामी का छुटकारा न था। कृष्णस्वामी कभी-कभी इस दासी से सेवा कराते और रमाबाई उसे देख पाती तो उसका झोंटा पकड़ कर सारे घर में घुमाती। परन्तु बहुत यत्न करने, संभाल करने, कड़ी दृष्टि रखने पर भी न जाने कब कैसे उस शूद्रा दासी को गर्भ रह गया। बहुत तूम-तड़ाम करने पर भी वह गर्भ गिराया नहीं गया। दासी ने एक सुन्दर पुत्ररत्न को जन्म दिया। उसी समय पुत्री शोभना का जन्म हुआ। वह दासी-पुत्र भी शोभना के साथ खेल- खाकर बड़ा होने लगा। शूद्रा दासी के जारज पुत्र के साथ अपनी लड़की का खेलना-खाना रमाबाई को रुचता न था, परन्तु पुत्र को जन्म देकर वह दासी बड़ी ढीठ हो गई थी। बहुधा पुत्र के लिए मालकिन से उलझ पड़ती थी। कृष्णस्वामी भी उससे न जाने क्यों दबते और भय खाते थे। बालक बहुत ही सुन्दर और शुभ लक्षणों से युक्त था। कृष्णस्वामी उसे मन ही मन प्यार करते थे। पर वे पूरे निष्ठावान ब्राह्मण थे। शूद्र के हाथ का छुआ जल पीना तो दूर, शूद्र को दूर से देख पाने पर भी वे स्नान करते थे। इसलिए उस बालक को गोद में बैठाकर प्यार नहीं कर सकते थे। ऐसे निष्ठावान पति पर भी रमाबाई उनका और शूद्रा दासी का कुछ गड़बड़ सम्बन्ध होने का सन्देह करती ही रहती थी। बहुत बार वह अपनी गोल-गोल आँखें घुमाकर पति से पूछती-“इस बालक की आँखें तुम्हारी-जैसी क्यों हैं? बताओ तो !"