कृष्णस्वामी कृष्णस्वामी बड़े भारी तान्त्रिक और मन्त्र-शास्त्री प्रसिद्ध थे। वे सोमनाथ महालय के अधिकारी थे, अतः अधिकारी जी के ही नाम से प्रसिद्ध थे। परन्तु उनका अधिक समय मन्त्र-तन्त्र की सिद्धि में ही जाता था। प्रसिद्ध था कि वह बहुत-से भूत-प्रेत-बैतालों के स्वामी हैं तथा उन्हें कर्ण-पिशाचिनी सिद्ध है। मारण-मोहन- उच्चाटन-वशीकरण की सब विद्याएँ वे जानते थे। स्वभाव उनका बहुत सौम्य और हँसमुख था। इससे लोग उनसे डरते न थे। उनसे पाटन के बहुत लोगों का काम निकलता था। अपने भूत-प्रेत-वैतालों की सहायता से वे बात-की-बात में लोगों के असाध्य काम कर डालते थे, उनके शत्रुओं का विनाश कर डालते थे। जिसपर उनका कोप छा जाता था, उसकी खैर नहीं थी। या तो वह खून थूक-थूक कर मर जाता या उन्मत्त हो जाता। कृष्णस्वामी ज्योतिष विद्या में भी पारंगत थे। भूत-भविष्य का सारा ज्ञान उन्हें था। पीला-पीला स्वर्ण-दम्भ और चाँदी का सिक्का उन्हें बहुत प्रिय था। सोना देकर उनसे भला बुरा सब-कुछ कराया जा सकता था। बहुत से गर्जू लोग उन्हें घेरे रहते थे। सोना भी खूब बरसता था। महालय से भी उन्हें उचित- अनुचित बहुत आय थी। अधिकारी थे, बहुत अधिकार उन्हें था। सर्वज्ञ के बाद मन्दिर के प्रबन्ध, आय-व्यय, व्यवस्था की सारी जिम्मेदारी कृष्णस्वामी के ही ऊपर थी। लाभ के लिए उचित क्या और अनुचित क्या, इसकी चिन्ता कृष्णस्वामी नहीं करते थे। बस लाभ होना चाहिए, यही एक उनके जीवन का प्रमुख ध्येय था। लाभ ही लाभ से उनके पास बहुत-सा स्वर्ण भण्डार एकत्र हो गया था। कृष्णस्वामी की पत्नी का नाम था रमाबाई। रमाबाई बहुत भारी-भरकम थीं। एक कन्या-रत्न को जन्म देकर फिर उनकी कोख सूख गई थी। कृष्णस्वामी के मन्त्र-तन्त्र, भूत- प्रेत कोई भी इस मामले में तरी न ला सके। रमाबाई का स्वभाव तीखा और उग्र था। रमाबाई की उग्रता के आगे कृष्णस्वामी के भूत-प्रेत-वैताल सभी हार खाते थे, किसी की आन वह मानती न थी। कभी-कभी तो वह खीझकर कृष्णस्वामी को उन्हीं के मुँह पर पाखण्डी कह देती थी। रमाबाई का शरीर एक गठरी-सा तथा चाल हथिनी के समान थी। पत्नी की चाल को देखकर कभी-कभी कृष्णस्वामी उन्हें गजगामिनी कहकर बहुत लाड़- प्यार से लगी-लिपटी ठठोली किया करते थे। परन्तु जब यह गजगामिनी अपनी गोल-गोल आँखें लट्ट की भाँति घुमा-फिराकर, कृष्णस्वामी को घूरकर हुंकारती, तो वे झटपट ‘ओं ह्रीं, क्लीं चामुंडायै फट्' आदि मन्त्र का जाप करने लगते थे। कृष्णस्वामी की एक बाल-विधवा पुत्री भी थी। उसका नाम था शोभना। शोभना शोभा की खान थी। आयु अभी उसकी केवल सत्रह वर्ष की ही थी। उसका रंग चम्पा के ताजे फूल के समान अथवा आम के फूले हुए बौर के समान अथवा केले के नवीन पत्ते के समान था। सातवाँ वर्ष लगते ही अधर्म के भय से कृष्णस्वामी ने लग्न शोधकर उसका विवाह कर दिया था। पर आठ वर्ष की आयु पूरी होने से प्रथम ही वह विधवा हो गई। विधवा होने पर भी वैधव्य की आन वह मानती न थी। वह हर समय खूब ठाट-बाट का शृंगार किए रहती।
पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/५०
दिखावट