मुहम्मद खूब ठाठ से रहने लगा। वृद्ध फकीर जैसे प्रौढ़ विद्वान् थे वैसे ही तलवार के भी धनी थे। उन्होंने युवक को घुड़सवारी और तलवार के फन में कुछ ही दिनों में अद्वितीय बना दिया। वह पक्का योद्धा और शहसवार बन गया तथा उस दिन की प्रतीक्षा करने लगा, जब इन घमण्डी हिन्दुओं की छाती को अपनी तलवार से चीर कर अपनी प्रियतमा शोभना को प्राप्त करेगा। अपमान की आग और प्यार की तड़प ने उसे सिंह के समान पराक्रमी और साहसी बना दिया। अवसर पाकर पीर की आज्ञा से वह गुप्त रूप से शोभना से मिला। उसे देखकर शोभना जी उठी। उसके बहुमूल्य वस्त्र, शस्त्र और अश्व को देखकर आश्चर्य से विमूढ़ हो गई। उसने कहा, यह सब उसके पीर की महिमा है। उसने यह भी बता दिया कि वह मुसलमान हो गया है और शीघ्र गज़नी के सुलतान की रकाब के साथ रहकर वह सोमनाथ का भंग कर, इसी तलवार के जोर पर शोभना को लेकर रहेगा। उसने यह भी कह दिया कि वह अमीर गज़नी का एक सिपहसालार है।" शोभना कुछ समझी, कुछ नहीं समझी। वह उसकी बातों से भीत, चकित भी हुई, प्रसन्न भी। वह इस बात पर सहमत थी कि उसके साथ पति-पत्नी की भाँति जैसे भी सम्भव हो, वह रहे। फतह मुहम्मद ने उसे एक मुट्ठी भर सोना देकर कहा, “यह मेरे पीर ने तेरे लिए दिया है। अब जब-जब मैं आउँगा, इतना ही सोना साथ लाउँगा। मेरे पीर औलिया हैं, कीमियागर हैं। वह सोने का पहाड़ बना सकते हैं।" सोना पाकर और बातें सुनकर शोभना का एक-एक रक्त-बिन्दु नाचने लगा। उसे भलीभाँति प्यार कर, उसे सब भाँति तसल्ली दे, फतह मुहम्मद विदा हुआ। शोभना आनन्द विभोर हो गई।
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