पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/५८

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"उसके बाद।" फकीर चुप रहे। बहुत देर तक सन्नाटा रहा। फिर उन्होंने धीरे से कहा- “कौन है वह बला?" “एक नाज़नीन।" फकीर फिर गहरी चिन्ता में डूब गए। उनके होंठ फड़के, एक फुसफुसाहट सी हुई, "अफसोस, सद-अफसोस!” फकीर की आँखों से झर-झर आँसू झरने लगे। महमूद एक बालक की भाँति विकल होकर डरते-डरते बोला, “क्या मेरी यह मुहिम नाकामयाब होगी?" "अलहम्दुलिल्लाह! कामयाब होगी। मगर यही आखिरी मुहिम होगी। और सुल्तान ज़िन्दा ज़रूर गज़नी पहुँचेगा, मगर बेकार।" सुलतान का मुँह सूख गया, उसने कहा, "क्या मैंने हज़रत को नाराज़ कर दिया?" “सुलतान! जब तुम अपना दिल और तलवार एक नाज़नीन को दे आए हो, तो अब मुझे क्यों तकलीफ देते हो? तुम समझते हो, तुम्हारे पीर को भी नाज़नीन से दिलचस्पी होगी?" "लेकिन हुजूर! महमूद ने अपनी सत्रह शानदार फतहें आप ही के पाक साए में हासिल की हैं।" “खैर, अब मुझसे क्या चाहते हो?" "रहम, हज़रत! आखिर महमूद भी एक हाड़-माँस का आदमी है!" “मैं तुम पर रहम करता हूँ महमूद!" "तो दुआ दीजिए!” “कह चुका, फतह होगी।" "लेकिन...।" "अमीरे-गज़नी को मुनासिब नहीं कि वह फकीर को तंग करे। अमीर के सब अहकाम बजा लाए गए हैं, मसऊद को वापस गज़नी भेज दिया गया है।" “मैं भी गज़नी वापस जा रहा हूँ।" “सोचने-समझने के लिए नहीं, बल्कि दिल का जो सौदा कर आए हो, उसकी जितनी मुमकिन हो, क़ीमत जुटाने के लिए। खैर, मुझसे सुलतान अब क्या चाहते हैं?" "सिर्फ एक काम।” "क्या?" “सिर्फ मुलतान को ठीक कर दीजिए और सब मैं देख लूँगा।" “वहाँ का राजा जयपाल मेरा मुरीद है, मैं कसर न रखूगा।" "हज़रत! आपकी इस एक ही मदद से मैं अपने मकसद को पहुँच सकूँगा।" "तो अमीर, इन्शा-अल्लाताला, यह कुछ मुश्किल न होगा। मेरी दुआ से उसे बेटा हुआ है। वह मेरी बात टाल न सकेगा।" महमूद प्रसन्न हुआ। उसने झुककर उस फक़ीर का क़बा चूम लिया। साधु ने कहा, “क्या सुलतान आज ही रवाना होंगे?" 'नहीं हज़रत, मैं और मेरा घोड़ा दोनों ही एकदम थक गए हैं। आज मैं आपकी