के सिन्ध में आ धमका। यह हजाज का भतीजा मुहम्मद-बिन-कासिम था। हज्जाज इब्ने युसुफ उन दिनों कोके का हाकिम था। उसी की आज्ञा से यह निडर लड़का सिन्ध में आया था। राजा दाहिर दस हजार सवार और बीस हज़ार पैदल लेकर उसके सम्मुख गया, परन्तु युद्ध में मारा गया। इस मुहिम से सत्रह हज़ार मन सोना तथा छह हज़ार ठोस सोने की मूर्तियाँ, जिनमें से एक तीस मन की थी, साथ ही बीस ऊँट हीरा-मोती-पन्ना-मानिक लेकर वह वापस चला गया। उसने प्रत्येक मित्र-शत्रु हिन्दू को कत्ल कर दिया। जिस ओर से वह गुज़रा, उस राह के सब मन्दिर ध्वंस कर दिए, सब गाँव जला दिए। उनके घरों और निवासियों को लूट लिया। वह आबाल-वृद्ध सबको तलवार के घाट उतारता गया। आपस की फूट और दुर्भाग्य के कारण कितने ही हिन्दू राजाओं ने इस नवागत अत्याचारी खूनी लड़के का स्वागत किया। जिन दिनों सिन्ध पर यह गुज़रा, उन्हीं दिनों मालाबार तट पर कुछ अरब व्यापारियों ने अपनी नई बस्तियाँ बसाई थीं। वे अपने जीवन में शान्त-शिष्ट नागरिक थे। वे भारतीय स्त्रियों से विवाह करके वहीं रहने लगे। इसी समय हिशाम का एक कबीला भाग कर भारत में कोंकण और कन्याकुमारी के पूर्वी किनारों पर बस गया। उन्होंने इन लोगों को रहने और घर बसाने में कोई बाधा न दी। हिन्दू राजाओं ने इन विदेशियों की बड़ी आवभगत की। उन्हें मस्जिदें बनाने और ज़मीन खरीदने की आज्ञा दे दी। इसका परिणाम यह हुआ कि आठवीं शताब्दी बीतते-बीतते मालाबार तट पर मुसलमानों की बड़ी-बड़ी बस्तियाँ बन चुकी थीं। और वहाँ के हिन्दुओं में वे अपने धर्म का प्रचार बड़ी लगन से करते थे। उनमें कोई मुल्ला न था, परन्तु प्रत्येक व्यक्ति प्रचारक था। उनके वैभव, धन और वीरता से मालाबार तट की दरिद्र नीच जातियाँ प्रभावित हो गईं। उनके विचारों, आचरणों, रीतियों और स्वभावों को ये जातियाँ चाव और कौतूहल से देखती थीं। उनका धर्म सीधा- सादा और उपासना हृदयग्राही थी। वे दिन-भर में अनेक बार नमाज़ पढ़ते थे। नमाज़ की सफ़बन्दी, रोज़ों की सख्त पाबन्दी, खैरात और उसके नियम, परस्पर सामाजिक सभ्यता आदि के सिद्धान्त, ये सब ऐसी बातें थीं, जो तत्कालीन दलित हिन्दू वर्ग की जातियों को, जो मालाबार तट पर फैली हुई थीं, प्रभावित किए बिना न रह सकती थीं। ये अरब योद्धा भी थे और वे आसपास के राजाओं से लड़कर उनकी ज़मीनों पर अपने हिन्दू राजा का अधिकार स्थापित करने में सहायता देते रहते थे।जहाँ-जहाँ राजा का अधिकार होता था, इन मुसलमान व्यापारियों की मंडियाँ भी वहाँ-वहाँ स्थापित हो जाती थीं। राजा जमोरिन ने तो यह आज्ञा दे दी थी कि मक्कवान जाति के प्रत्येक मल्लाह परिवार का एक आदमी अवश्य इस्लाम धर्म स्वीकार करे। इसका फल यह हुआ कि जब दसवीं शताब्दी में मसूदी ने भारत की यात्रा की तो उसने दस हज़ार मुसलमानों की बस्तियाँ चौल में पाई थीं। इस समय भारत में हिन्दूधर्म और समाज में विप्लव मचा हुआ था। बौद्ध, जैन, शैव, शाक्त परस्पर भयानक संघर्षों, कुरीतियों और अंधविश्वासों में फँसे थे। ब्राह्मणों ने बौद्धों और जैनियों को नष्टप्राय कर दिया था। शैवों और वैष्णवों की प्रबलता हो रही थी और वे आपस में उलझ रहे थे। राजनैतिक अवस्था छिन्न-भिन्न थी। प्राचीन राजवंश जर्जर हो ही गए थे। राजपूतों के नए वंश जो उदीयमान हो रहे थे, अभी प्रतिष्ठित नहीं हुए थे। मानसिक अंधता राजवर्गियों तक में थी।
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