सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/६२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

साम्पत्तिक दृष्टिकोण से यह युग एक सम्पन्न युग था। परन्तु इस सम्पदा के भोक्ता देश के सब लोग न थे। केवल राजा, ब्राह्मण और सेठ लोग ही उसका उपभोग करते थे। शेष लोगों की दशा अति दयनीय थी। सम्पत्ति के सबसे बड़े भाग के भोक्ता राजा लोगों के राजमहलों में विलासपूर्ण आहार-विहार के अद्भुत साधन उपस्थित रहते। उनके राजदरबारों में कितने ही कवि, कलाकार, चापलूस, मसखरे सदा बने रहते। दास-दासियों की फौज के बिना उनका काम नहीं चलता था। घरों में स्त्रियों की पलटने भरी रहती थीं। उनकी नैतिकता और दायित्व का कोई मापदण्ड न था। युद्ध में भी इनका भारी व्यय होता था और ये युद्ध प्राय: बिना किसी उद्देश्य के निरर्थक विजय या परस्पर की ईर्ष्या या कन्याहरण के लिए किए जाते थे। इनकी मनमानी के समर्थक ब्राह्मण थे, जो इनसे बड़ी- बड़ी दक्षिणा लेते थे। ब्राह्मणों ने बड़े-बड़े देवालय और मन्दिर बना लिए थे, जहाँ हिन्दुओं की अतोल सम्पदा खिंची चली आती थी। इन राजाओं के पारस्परिक संघर्षों तथा धर्मकेन्द्र मन्दिरों की बड़ी-चढ़ी समृद्धि के बढ़े-चढ़े वर्णन देश-देशान्तरों के डाकुओं के कानों तक पहुँच चुके थे। महमूद ने स्वयं आकर वह सम्पदा देखी और लूटकर मालामाल हुआ था। वह एक सफल साहसी डाकू था। वह देख चुका था कि भारत की इस अटूट सम्पदा का कोई रक्षक नहीं है। उस समय भारत भूमि के राजा परस्पर की कलह- ईर्ष्या और अभिमान में चूर थे। अपने बड़प्पन के नशे में वे दूसरे को न देख पाते थे। आलस्य और अविचार उनमें भर गया था। वे अफ़ीम घोलते, मद्य पीते और रसरंग में मत्त रहते थे। प्रजा में भी एकता न थी। अनेक पन्थ, अनेक मत, अनेक विचार, अनेक अंधविश्वासों ने उनके मन में घर कर रक्खा था। छुआछूत का भूत उन्हें ग्रस चुका था। धर्म के नाम पर अधर्म उनके नित्य कृत्य हो चुके थे। इस प्रकार इस काल में भारत की एकता भंग हो चुकी थी। उसका जीवन बिखर चुका था। प्रबल धक्का देकर सम्पूर्ण भारत की राजनीति व धर्मनीति को एक सूत्र में बाँधने वाला उस काल में कोई पुरुष देश में नहीं था। हिन्दुओं के इस अरक्षित जीवन से लाभ उठाकर मुसलमान साधु-फकीर सैकड़ों की संख्या में सम्पूर्ण भारतवर्ष में फैलकर बस गए थे। वे देश के दीन-दरिद्रों को धड़ाधड़ मुसलमान बना रहे थे। इनमें एक साधु बाबा फखरुद्दीन थे, जो तेन्नुकोडा में रहते थे। उन्होंने वहाँ के राजा को मुसलमान बनाया था। मलिकुल मलूक और उसका साथी अलियारशाह ऐसे साधु थे जिन्होंने ग्यारहवीं शताब्दी के मध्य काल में मदुरा में अनगिनत मुसलमान बनाए थे। मुलतान और सिन्ध को विजय करके जब कासिम लौट गया, तब उसके लगभग 300 वर्ष तक और कोई आक्रमण भारत पर नहीं हुआ। महमूद के आक्रमण- भारत के पश्चिमी प्रान्त के कुछ हिस्सों पर मुसलमान शासक था और काठियावाड़, गुजरात, कोंकण, दाखवल्य, सोमनाथ, भड़ौंच, खम्मात, सिहाना और चौल में उनकी बस्तियाँ बस रही थीं। यद्यपि काबुल में इस समय भी एक ब्राह्मण राज्य कर रहा था, परन्तु मुसलमानों में सभी को दिलचस्पी थी। बहुत राजा उनसे प्रेम करते थे। मुसलमान फकीरों का सर्वत्र मान होता था और ये बिना ही ज़ोर-जुल्म और तलवार के भारत में इसलाम का बीज बोते और मुसलमान आक्रान्ताओं को सब सम्भव सहायता देते थे। उस समय के वातावरण में यह सम्भव भी था। अलबरूनी लिखता है कि हिन्दू धर्म इस योग्य नहीं रह गया है कि उसमें ब्राह्मणों के सिवा कोई व्यक्ति आत्म-सम्मान से रह सके। ब्राह्मण और काल