पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/७५

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चोटें पड़ने लगीं। पलक मारते ही वह मायानगर अदृश्य हो गया? और उँटों, अश्वों, खच्चरों और पैदलों की अटूट कतार की कतार महासर्प की तरह रेंगती हुई भारत भूमि पर अग्रसर हुई, जैसे यह विजयी योद्धा किसी बिना द्वार के दुर्ग में घुस रहा हो।