हो रहा था। खेतीबाड़ी करने वाले कृषकों पर अमलदार मनमाने अत्याचार करते और लूटते थे। सेना की दशा अत्यन्त शोचनीय थी। सिपाहियों को छ:-छ: मास तक वेतन न मिलता था। उनके शस्त्रास्त्रों तक का ठिकाना न था। पुरानी रद्दी तलवारें और रद्दी पुरानी बन्दूकें तथा बिना फणी के बाण उनके हथियार थे। सिपाहियों की वर्दी की तो अत्यन्त दुर्दशा थी। राजपूतों में अफीम घोलने का व्यसन बढ़ गया था। प्राय: सिपाही पहर दिन चढ़े उठते, अफीम घोलते और पिनक में बैठे ऊंघते या गप्पें मारते बैठे रहते। राजा ने वीकणशाह नामक एक वणिक को मन्त्री की पाग बंधाई थी। वह एक काइयाँ बाणियाँ था। उसे राज्य में स्याह-सफेद करने के सब अधिकार प्राप्त थे। वह सम्पूर्ण राज्य का भार अपने सिर लिए मनमानी रीति से लूट-पाट करके अपना उल्लू सीधा करता था। अधीनस्थ कर्मचारी भी प्रजा को मनमानी रीति पर लूटते और अपनी जेबें भरते थे। राजा जैसे बाजीगर का बन्दर था, जिसे हीरे-मोती की जड़ाऊ पोशाक पहनाकर जी-हुजूरिए जैसे चाहते, नचाते थे। गोलों, खवासों से लेकर बड़े बड़े कर्मचारियों तक प्रत्येक राजा के अज्ञान और सिधाई से लाभ उठाता था। भूदेवों, ज्योतिषियों और रम्मालों की बन आई थी। वे भी राजा को खूब भरमाते थे। राजा का स्वभाव खर्चीला था। वह एक के स्थान पर दस खर्च करने को आतुर रहता। आसपास के मतलबी लोग राज्य-कोष को लूटते ही रहते थे और राजा अफीम की पिनक में टें रहता था जिसके हाथ में गुजरात के रक्षण का भार था, उसकी यह दीन दशा थी। फिर देश की दुर्दशा का क्या कहना था। राजा के ज्येष्ठ पुत्र का नाम वल्लभदेव था। वह समझदार और वीर था। पर जी- हुजूरिए सदैव उसके विरुद्ध राजा के कान भरते रहते थे। राजा को सदा भय रहता था कि युवराज वल्लभदेव उसे मार कर राज्य लेने की खटपट में है। इससे राजा सदैव अपने पुत्र को अपने से दूर रखता था। राजा से युवराज के दूर रहने से ही जी-हुजूरियों का मतलब राजा के दूसरे पुत्र का नाम दुर्लभदेव था। यह दुष्ट स्वभाव का, ढोंगी, चालाक एवं अत्याचारी निष्ठुर व्यक्ति था। वह खटपटी जी-हुजूरियों के बीच आड़े नहीं आता था। इसलिए ये लुटेरे अधिकारी सदैव उसीका पक्ष लेते थे। तीसरे पुत्र नागराज का पुत्र भीमदेव था। वह प्रसिद्ध धनुर्धर था और गुजरात में 'बाणबली' के नाम से प्रसिद्ध था। वह एक उत्साही योद्धा और साहसी एवं विवेकी तरुण था। परन्तु लोगों ने इसके विरुद्ध भी राजा के कान भर रखे थे। युवराज वल्लभदेव और भीमदेव में काफी मेलजोल था। और ये दोनों चाचा-भतीजे इस अंधेरगर्दी से असन्तुष्ट थे। तथा राजा से भी अनादृत हो राजधानी से दूर एकान्त में एक मनपसन्द गाँव में रहते थे। गुजरात की वास्तविक दशा ऐसी ही थी, जब गज़नी का अमीर बर्बर दुर्जेय पठानों के दल-बादल ले गुजरात को दलित करने के हेतु दबादब बढ़ा चला आ रहा था। सधता था।
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