पृष्ठ:सोमनाथ.djvu/९९

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गुर्जराधिपति महाराजाधिराज, परमभट्टारक, परममाहेश्वर, गुर्जराधिपति श्रीचामुण्डराय महाराज की आयु साठ को पार कर गई थी। महाराज को नई-नई इमारतें बनवाने का भारी शौक था। इस समय आप श्वेत मर्मर का एक विशाल जलाशय बनवा रहे थे। उसके साथ एक बृहत् वाटिका भी तैयार हो रही थी। वाटिका के लिए देश-देश के फल-फूल वाले वृक्ष मँगाए और रोपे जा रहे थे। प्रवीण मालियों ने मनोरम रौसें निकाल और ठौर-ठौर पर लताकुंज बनाकर वाटिका का दृश्य अति मनोहर बनाया था। जलाशय का निर्माण भी अद्भुत था। उसमें कटाई और जाली का काम तथा पत्थर खोदकर उसमें भिन्न-भिन्न रंग के मणि-रत्न जमाने का काम सैकड़ों गुणी और प्रसिद्ध कारीगर कर रहे थे, जो देश-देश से भारी वेतन और राह-खर्च देकर बुलाए गए थे। देश-विदेश में जहाँ जो वस्तु इस जलाशय एवं वाटिका के उपयोग की देखी-सुनी जाती थी, वहीं के राजा के नाम गुर्जराधिपति का अनुरोध पत्र पहुँचता था। और प्रत्येक मूल्य पर वह वस्तु प्राप्त करने का यत्न किया जाता था। हज़ारों गुर्जर, यवन एवं विदेशी कारीगर अपने-अपने काम में लगे हुए थे। महाराज गुर्जरेश्वर सब काम अपनी आँखों से देखते और कुशल कारीगरों को इनाम-इकराम बाँटते। राज-प्रासाद छोड़कर वे इसी वाटिका में डेरा-तम्बू ताने रनवास-सहित विराजमान थे। महाराज का मनोरंजन करने और उनकी उदारता से लाभ उठाने को दूर-दूर से नट, बाजीगर, कंचनियाँ, मल्ल, गायक आदि कलाकारों के जत्थे-के-जत्थे प्रतिदिन आते रहते थे। वे अपनी कला से महाराज का मनोरंजन करते और भारी इनाम-सिरोपाव पाकर महाराज की यश-कीर्ति को दिग्दिगन्त में व्याप्त करते जा रहे थे। तथा उनके स्थान पर और आते जा रहे थे। महाराज उन्हें भी मुक्त हाथ से इनाम-सिरोपाव देते और प्रसन्न होते थे। मध्याह्न होने में अभी देर थी। शरदकालीन सुनहरी धूप चारों और फैली थी। महाराजाधिराज गुर्जरेश्वर अमल-पानी से निपट कर अपने विशाल सुनहरी खेमे में मसनद पर पौढ़ गए। एक खवास ने मोरछल लिया, दूसरे ने पैरों के पास बैठकर मखमली पायदान निकट सरका दिया। जी-हुजूरिए आ-आकर जुहार करके बैठ गए। महाराज अफीम की पिनक में झूमने लगे। एक हुजूरिए ने कहा- “कुमार भीमदेव आज भी नहीं आए अन्नदाता।" दूसरे ने कहा, “सुना है, कुमार और युवराज दोनों ही सिद्धेश्वर में जा बैठे है।" "परन्तु यह सब तो दरबार से दूर-दूर रहने के ढंग हैं। युवराज और कुमार दोनों ही अन्नदाता की आज्ञा का पालन नहीं करते हैं।" दूसरे मर्जीदान ने धीरे से कहा। गुर्जरेश्वर पिनक में थे। उन्होंने केवल अन्तिम वाक्य सुना और पिनक से चौंक कर आधी आँख उघाड़ कर कहा- “जो हमारी आज्ञा का उल्लंघन करता है, उसे अभी सूली पर चढ़ा दो।" अब जी-हुजूरियों ने जैसे डरते-डरते हाथ जोड़कर कहा-