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सत्रहवॉ प्रस्ताव

मुझे आपकी खिदमत करने में भी कोई उन नहीं है। मेरी जैसी औकात है,बाहर नहीं हूँ।.

दारोगा–(मन में) मैं इस बदमाश को खूब जानता हूँ। इसमें शक नहीं, इन बावुओं को इसी ने खराब किया है।बाबुओं को क्या! इसने न जानिए कितने रईसों को बिगाड़ डाला। इस मूॅजी को तो मै बहुत दिनों से तके था, कई बार मेरे चंगुल में आया, पर अपनी चालाकी से बचता चला गया। अच्छा, पहले इसे टटोले तो, इसमें कहाँ तक दम है।मुझे पूरा विश्वास है, यह सब शरारत इसी की है। पर तो भी इससे पता लग जायगा कि इन बाबुओं की कहॉ तक इसमें दम्तं दाजी है, और कौन-कौन लोग इसमें शरीक हैं। मैने उस हैरत-अंगेज बुद्धदास की भी फिकिर कर रक्खी है । सेठ हीरा- चद की शराफत का खयाल कर इन बाबुओं पर मुझे भी रहम आता है, पर इन बदमाशो को तो हरगिज न छोडूंगा। (प्रकाश) कहिए, आप क्या कहते हैं। इज्जत तो इस नाजक ज़माने में, मैं हूँ या आप हों, बचा रहना खूदा के हाथ में है. इसोलिये अलमद लोग फूॅक-फूॅक पॉव रखते हैं। मसल है 'सॉच को ऑच क्या?" अगर आप इसमे है नहीं, तो डर किस बात का | "कर नहीं, तो डर क्या ?" अदालत इंसाफ के लिये है, वहाँ दूध का दूध पानी का पानी छान- बीन अलग-अलग कर दिया जाता है, आप बेफिकिर रहें, कुसूर नहीं किया, तो तुम्हारा कुछ न होगा।