पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/११०

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अठारहवाँ प्रस्ताव

गरम होने का मौका मिलेगा, ५ तोड़े भी हाथ न आए, तो कुछ न हुआ। इधर कई दिनों से बिलकुल खाली जाता था, अल्लाह ने एक साथ भारी रकम भेज दो। कल रात बी बन्नी कड़कविजली और झूमड़ के लिये झगड़ रही थी, यह रकम गोया उसी के नसीव से हाथ आवेगी। दारोगा सुजानसिह और नक़ीअली कास्टेबिल को मैने इसके लिये तनात किया है, मालूम नहीं क्या हुआ। (पीनक से जग एक फूॅक हुक्के की ले)–अबे फहमुआ, नामाकूल कैसी तंबाकू भर लाया है, कलेजा तक झुलस गया। अहमक तुझसे हजार मरतबा कहा गया, तू अपनी आदतों से बाज न आएगा। आठ रुपए सेरवाली तबाकू जो अभी कल मिट्ठू तबाकूवाला नजर दे गया, उसे क्या किया, क्यों नहीं भरा ?

फहमुआ–साहब, भूल गएउॅ हं, भरे लावत हो।

(नकीअली सलाम कर नदू को सामने हाजिर कर)

'हुज़ूर, यह तो मिले हैं, बाकी दोनो की फिक्र मे दारोगा साहब गए हैं।"

कोतवाल–आहा !आप हैं कहिए आप तो बाबू साहब के बड़े दोस्त हैं। (मन में ) खैर, पहले इसी मूॅजी से निपट ले। यह बड़ा बदमाश और चालाक है। अच्छा, आज चगुल में आया। (प्रकाश ) आप लोग देखने ही के सुफेदपोश हैं, पर काम जो आप लोगों से बन पड़ता है, वह एक हकीर छोटे-से-