अस्तु। चंदू ने उन दोनों के बचाने को क्या किया, सो आगे खुलेगा। पंचानन को जी से लग गई कि अपने मित्र चंदू की इच्छा पूरी करे। अब यह सोचने लगा कि क्या उपाय होना चाहिए कि चंदू का मनोरथ भी सिद्ध हो, और उन दोनो बदमाशों को उनके किए का फल मिले। पंचानन चालाकी और कानूनी बारीकियों के समझने में किसी से कम न था, बल्कि उस प्रांत के नामी वकील पेचीदह मुकदमों में बहुधा इसकी राय लिया करते थे। कभी-कभी तो ऐसा भी हुआ है कि जिस मुकदमे में इसने जैसी राय दी, वह हाईकोर्ट तक बहाल रही। बड़े-बड़े जालियों को यह बात-की-बात में ऐसा पकड़ लेता था कि उनकी एक भी नहीं चलती थी। पर इन सब गुणों के रहते भी इसे जो सच्चा, न्याय और इंसाफ होता था, वही पसंद आता था। "सॉच को ऑच क्या" यह पालिसी हमेशा इसे रुचा की। इसलिये इसको यही पसंद आया कि हीराचंद के दोनों वंशधर खुद अदालत में जाय हाजिर हों और जो सच हो, सो कह दें। इससे वे दोनों तो जरूर हो फॅस जायॅगे, और बाबुओं के बचाव की कोई सूरत निकल आवेगी। अब रह गया इनका एकरार कर देना, इस पर बहस और तक़रीर की बहुत कुछ गुंजाइश रहेगी। सच, पूछो, तो बड़े-बड़े बैरिस्टर और वकील जो हजारों एक दिन की बहस मुअकिल से पुजाय बेचारे को उलटे छुरा मूड़ भरपूर अपना मतलब गॉठते हैं, सो इसी
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