पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/१२६

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टिप्पणी-सहित कठिन-शब्दार्थ-सूची

कचलपटी—(सं॰ कछ-
लंपटता)—आवारगी।
छिछोरपन—क्षुद्रता; नीचता।
आय—(पुरानी हिंदी के
'आसना' 'आहना' [होना]
क्रिया का पूर्वकालिक।
रूप; शुद्ध शब्द 'आहि'
है। प्रायः भट्टजी ने पुरानी

हिंदी के अनुसार धातुओं का
पूर्वकालिक रूप ऐसा ही
लिखा है। अन्य स्थानों में
भी जैसे "पकड़ाय", "बुलाय"
इसी तरह से समझना
चाहिए) आकर।
सोवत हैं—सोते हैं (प्रयाग के
आस-पास की यही भाषा है)।

दूसरा प्रस्ताव

जलप्राय-जलमय, वह प्रदेश । बहुश्रुत-( बहु - बहुत ; या स्थान, जहॉ जल अधिकता श्रुत% सुना हुआ या शास्त्र) से हो। जिसने बहुत सुना हो, अर्थात् हरित - तृण-आच्छादित विद्वान्, पंडित। हरी-हरी घास से ढकी हुई। ग्रथ-चुबक-( ग्रंथ = पुस्तक; मरकतमई-सी-मानो पन्ने चुंबक = चूमनेवाला) जो (एक प्रकार का हरा मणि) किसी विषय का पूर्ण विद्वान् से जडी। न हो, वरन् ग्रंथो का केवल बॉकुरे-बंक, बाँका (यह पाठ-मात्र कर गया हो, उसके शब्द प्रायः वीर शब्द के साथ विषय को समझा न हो। श्राता है, जैसे “वीर अल्पज्ञ। बाँकुरे")। साक्षर-मात्र-जो थोडा भी पुण्यतोया-पवित्र जलवाली। पढा-लिखा हो। सरिद्वरा-नदियो में श्रेष्ठ । वृत्ति-दान। अनुशीलन-अभ्यास, अध्य वेदरेग-विना सोचे-समझे। यन। वेजा-अनुचित ।