पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/१२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१२६ सौ श्रजान और एक सुजान जनखा-( फ्रा० - शब्द ) | नितांत-श्रत्यंत । हिजड़ा, नपुंसक। स्फूर्ति-प्रकाश, प्रतिभा । सुमिरनी-जपने की २७ दानों नवनता-नम्रता। की माला। तीसरा प्रस्ताव विद्वन्मंडली • मंडनशिरो- । मानसिक-मन-संबंधी। । मणि-विद्वानों के समूह में । मोतकिद-कायल । सवश्रेष्ठ । "शांति और क्षमा...कुसु- दुरूह-कठिन। | · मौकर"-इसमें रूपक अलं- अनुपपन्न-असमर्थ। कारों की लडी की लड़ी है। गुजरान-(फ्रा० - शब्द ) | तृष्णालता गहन 'वन- व्यतीत, जीविका-निर्वाहार्थ।। लोभरूपी लताओं का धना श्रुताध्ययनसंपन्न-विद्वान् । जंगल। सवृत्त-अच्छा चरित्रवाला, अज्ञानतिमिर-मूर्खतारूपी सदाचारी। अंधकार। लिलार-(सं० ललाट) सहस्रांशु-( सहस्र = हज़ार; मस्तक, माथा । अंशु-किरण ) हजार दामिनि-(सं० दामिनी) किरणवाला; सूर्य । बिजुली। दुराग्रह-किसी बात पर आर्ष-ऋषियों का बनाया हुश्रा। मूर्खता के साथ हठ करना। संथा-पाठ । कूरग्रह-पापग्रह (सितारे); भासतीथी-मालूम होता था। शनिश्चर, राहु, केतु आदि । मनमानस-मनरूपी मान अस्ताचल-(अस्त = डूबना; सरोवर; रूपक अलंकार। छिपना । अचल = जो न कायिक-शरीर-संबंधी। चले; पर्वत या पहाड ) पुराने