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पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/१२७

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सौ अजान और एक सुजान

ज़नख़ा—(फ्रा॰-शब्द) हिजड़ा, नपुंसक।
सुमिरनी—जपने की २७ दानों की माला।

नितांत—अत्यंत।
स्फूर्ति—प्रकाश, प्रतिभा।
नवनता—नम्रता।

 

तीसरा प्रस्ताव

विद्वन्मंडली-मंडनशिरोमणि—विद्वानों के समूह में सवश्रेष्ठ।
दुरूह—कठिन।
अनुपपन्न—असमर्थ।
गुज़रान—(फ्रा॰-शब्द) व्यतीत, जीविका-निर्वाहार्थ।
श्रुताध्ययनसंपन्न—विद्वान्।
सद‍्वृत्त—अच्छा चरित्रवाला, सदाचारी।
लिलार—(सं॰ ललाट) मस्तक, माथा।
दामिनि—(सं॰ दामिनी) बिजुली।
आर्ष—ऋषियों का बनाया हुआ।
संथा—पाठ।
भासती थी—मालूम होता था।
मनमानस—मनरूपी मानसरोवर; रूपक अलंकार।
कायिक—शरीर-संबंधी।

मानसिक—मन-संबंधी।
मोतकिद—कायल।
"शांति और क्षमा……कुसुमाकर"—इसमें रूपक अलंकारों की लढी की लड़ी है।
तृष्णालता गहन वन—लोभरूपी लताओं का घना जंगल।
अज्ञानतिमिर—मूर्खतारूपी अंधकार।
सहस्रांशु—(सहस्र=हज़ार; अंशु=किरण) हज़ार किरणवाला; सूर्य।
दुराग्रह—किसी बात पर मूर्खता के साथ हठ करना।
कूरग्रह—पापग्रह (सितारे); शनिश्चर, राहु, केतु आदि।
अस्ताचल—(अस्त=डूबना; छिपना। अचल=जो न चले; पर्वत या पहाड़ ) पुराने सिद्धांत के अनुसार जहाँ सूर्य, चंद्रमा आदि ग्रह अस्त (छिप) हो जाते हैं।