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सौ अजान और एक सुजान


प्रतीत होती है। अवध इक्ष्वाकु और रामचंद्र के समय से वीर बाँकुरे क्षत्रियों का उत्पत्ति स्थान प्रसिद्ध है। सरकारी फ़ौज में अब भी बेसवारे के सिपाहियों का दर्जा अव्वल समझा जाता है। पंजाब की लड़ाई में ज़र्रार सिक्खों के दाँत यदि किसी ने खट्टे किए, तो इन बैसवारेवालों ही ने। अस्तु, इस अवध के इलाके में पुण्यतोया सरिद्वरा गोमती के तट पर अनंतपुर नाम का एक पुराना कस्बा है। यहाँ सेठों का एक पुराना घराना है, जो अपनी कदामत का पता उस नगर की प्राचीनता के साथ-ही-साथ बराबर देता चला आता है। इस घराने के सेठ लोग पहले दिल्ली के बादशाहों के खज़ानची बहुत दिनों तक रहे, किंतु इधर थोड़े दिनों से समय के हेरफेर से यह खानदान बिलकुल दब गया; और अब सिवा किले-से बड़े भारी मकान के कोई निशान इस घराने के पुराने बड़प्पन का बाकी न रहा। किंतु इधर हाल में यह खानदान फिर जुगजुगाने लगा, और सेठ हीराचंद, जिनसे मेरे इस कथानक का आरंभ है, बड़े प्रसिद्ध और भाग्यवान् पुरुष हुए, जिन्होंने अपने उद्यम और व्यापार से असंख्य धन-संपत्ति के सिवा बहुत-से गाँव-गिराँव और इलाके भी बढ़ाए। नसीबे का सिकंदर यह यहाँ तक था कि इसके भाग से मिट्टी छूते सोना होता था, जिस काम को अपने हाथ में लेता, उसे बिना छोर तक पहुँचाए अधूरा कभी नहीं छोड़ देता था। नीति भी है—