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पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/१२

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दूसरा प्रस्ताव


कहा-"बड़ा जरूरी काग़ज़ है। सोकर उठे, तो यह पुलिंदा उन्हें दे देना।" पुलिंदा दासी के हाथ में पकड़ाय आप चल दिया। दासी ने किवाड़ बंद कर लिया और भीतर चली गई।



दूसरा प्रस्ताव

नर की अरु नल-नीर की गति एक करि जोय;
जेतो नीचो ह्वै चलै, तेतो ऊँचो होय।

हिंदुस्तान मे अवध का प्रांत भी सदा से प्रसिद्ध होता आया है। पृथ्वी का यह सम भू-भाग अनेक छोटी-बड़ी नदियों से सिंचा हुआ उपज और पैदावारी में और प्रांतों की अपेक्षा आगे बढ़ा हुआ है। यद्यपि बंगाल, बिहार, तिरहुत आदि कई एक और सूबे भी जलप्राय देश होने से अधिक उपजाऊ हैं, किंतु वैसे पुष्ट धान्य, जैसे अवध में उपजते है, और प्रांतों में कहाँ! उन-उन प्रांतों की उपज शारदीय अर्थात् कुँवारी और अगहनी-मात्र है, धरती के अत्यंत निर्बल और अधिक जलमय होने से वासंती अर्थात् चैती फसल वहाँ बिलकुल या बहुत कम होती है, और अगहनी में भी ज्वार, बाजरा आदि कई एक प्रकार के अन्न की खेती का तो नाम भी नहीं है। और ठौर जब कि जेठ-बैसाख की तपन और लूह मे मुलसकर कहीं हरियाली का लेश भी नहीं रहने पाता, यहाँ तब भी हरिततृण-आच्छादित पृथ्वी मरकतमयी-सी