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सौ अजान और एक सुजान


उदाहरण हैं,या एक ही डंठल के दो गुलाब हैं,या वसंत ऋतु के चैत्र वैशाख दो महीने हैं। साँचे के-से ढले इन दोनों के एक-एक अंग और रंग-रूप में यहाँ तक तुलना थी कि दाहने गाल पर एक तिल जैसा बड़े के था,ठीक वैसा ही एक तिल छोटे के गोल कपोल पर भी,चंद्रमा के गोलाकार मंडल में अंक के समान,शोभा दे रहा था।सामुद्रिकशास्त्र में लिखे हुए इनके अंग-प्रत्यंग में ऐसे-ऐसे एक-से लक्षणों को देख बोध होता था मानो ये दोनो जब गर्भ में थे,तभी इनका शुभ-अशुभ भावी परिणाम नियत कर बिधना ने इन्हें पैदा किया था।न केवल इन दोनो के शरीर की सुघराहट और बनावट ही में समता थी,बरन शील-स्वभाव,रंग-ढंग, बोल-चाल,रहन-सहन,सब इन दोनों का एक-सा था। उमर इस समय बड़े की चौदह और छोटे की बारह वर्ष की थी। कुछ दिनों तक ये दोनोंबराबर उसी क्रम पर चले गए,जिस क्रम पर सेठ इन्हें रख,गया था। चंदू नित्य इनके घर पढ़ाने आता। कभी-कभी यही दोनों उसके घर जाते थे। चंदू इन्हें पढ़ातातो थोड़ा,पर इधर-उधर की चतुराई की बातें,जो इनकी कोमल बुद्धि में सहज में समा सके और सोहावनी मालूम हो,बहुत सुनाया करता था। ये भी बड़े शांत और विनीत भाव से उसकी बातें सुनते और गुरु के समान उसका यथोचित आदर करते थे। चंदू की योग्यता और पांडित्य का प्रकाश हम पहले कर आए हैं कि यह पंडितजी का पट्टशिष्य था,और