सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
चौथा प्रस्ताव


जब जगह की, तो उसी तरह के सब सामान इकट्ठे होने की फिक्र हुई। एकाएक अज्ञान-तिमिर के छा आने पर चॉदनी- समान चदू के उपदेश को प्रकाश पाने का अवसर ही न रहा।असंख्य वन और राजसी वैभव पर अपनी स्वतंत्र अधिकार देख दोनों में एक साथ चढ़े हुए दर्पदाह ज्वर की दाहन बुझाने, को सदुपदेश शीतलोपचार इनके लिये किसी भाँति कारगर न हुआ। बबुआ से बाबू साहब बनने का शौक बढ़ा;जी मे नई-नई उमंगों का समुद्र उमड़-उमड़ लहराने लगा। सेठ की दौलत पर गीध के समान ताक लगाए बैठे हुए मीरशिकार भोड़-भगति दूर-दूर से आ जमा होने लगे,रखुशामदी,चुटकी बजानेवाले मुफ्तखोरों की बन पड़ी।चंदू की शिक्षा के अनु-सार चलने की कौन कहे,उसके नाम की चर्चा भी चित्त में दोनों को बिच्छू के डंक की भाँति व्यथा उपजाने लगी।इनकी पसंद या तबियत के खिलाफ जरा-सा कोई कुछ कहता,तो वह इनका पूरा दुश्मन बन जाता था। चंदू जब इनकी कोई अनुचित बात देखता,उसी दम इन्हें टोक देता और आगे के लिये सावधान हो जाने को चिता देता था।यह इन दोनों को जहर लगता था,और जी से यही चाहते थे कि कौन-सा ऐसा शुभ दिन होगा कि इस खसट से हमारा पिंड छूटेगा। जो अनंतपुर सेठजी-सरीखे विद्यारसिक भोजदेव के मानो ननावतार के समय दूर-दूर से मुड-के-मुड नित्य नए विद्वानों के आने-जाने से छोटी काशी का नमूना