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सौ अजान और एक सुजान

भूलभुलैया में छोड़ हजारो चक्कर दिलाती है;राग-सागर की तरंगों में तरेर फिर उमड़ने ही नहीं देती। हम ऊपर कह पाए हैं,कि इन दोनों बावुओं में न केवल चढ़ती जवानी का जोश उफान दे रहा था,अपितु धन,संपत्ति प्रभुता और स्वतत्रता का पूरा प्रादुर्भाव था,जिसके कारण तरल-तरंगिणी-तुल्य तारुण्य-कुतर्की ने अत्यंत सहायता पाय इन्हें चारों ओर से अपना ताबेदार करने में लव-मात्र भी त्रुटि न की।धन-मद ने भी इस नए पाहुते ने बै की पहुनाई के लिये सब भॉति सन्नद्ध हो सत्संग की श्रद्धा को शिथिल कर डाला।अब इन कुचालियों को महात्मा हीराचंद की दिखाई हुई सुराह पर चलना महा जजाल हो गया।इनके हृदय की आँखों में कुछ ऐसा अनोखा अधकार छा गया कि राहु की छाया-समान उसका आभास इनके यावत् कामों में प्रसार पाने लगा।झूठी-झूठी बातों से मन को लुभानेवाले नुशामदी चापलूसों के ठट्ट-के-ठट्ट जमा हो इन्हें अपने ढग पर उतार लाए। इन्हें इस बात का जान बिलकुल न रहा कि ये सब अपने मतलब के दोस्त है;काम पड़ने पर ये कोई हमारा साथ न देंगे।चिरकाल तक अभ्यसित चंदू के चोखे चुटीले उपदेशों की वासना भी न रही। नए-नए लोग जिनकी बड़े सेठजी के समय कभी सूरत भी न देख पडती थी,वे उनके दिली दोस्त हो गए। इनका रोब और दिमाग देख किसी की हिम्मत न पड़ती थी कि इनसे।इसके लिये कुछ मुह पर लाये। पुराने बूढ़ों में से जिसने कभी