पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/३०

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पाँचवॉ प्रस्ताव
 


कुछ कहने का साहस किया. वह इनका जानी दुश्मन बन गया ऐसों का संग करना कैसा,बल्कि उनका नाम सुन चिढ़ उठते थे। ऐसे लोगों से दूर रहना ही इन्हे पसद आता था।नाच-तमाशे, खेल-कूद,सवारी-शिकारी,पोशाक और घर की सजा-वट की ओर अजहद शौक बढ़ा। दोनो बाबू सदा इसी चेष्टा में रहते थे कि इन सब सजावटो मे आस-पास के अमीर,ताल्लुकेदार और बाबुओ मे कोई हमारे आगे न बढ़ने पावे,और इसी चढ़ा-उतरी में लाखो रुपया ठिकरी कर डाला अपनी खूब-सूरती,अपनी पसंद,अपनी बात सबके अपर रहे। इनके कहने को जरा भी किसी ने दूखा कि त्योरी बदल जाती,मिजाज बरहम हो जाता था।दुर्व्यसन के विष का बीज बोनेवाले चापलूस चालाकों की बन पड़ी।एक चापलूस बोला-"बावू साहब,आपके घराने का बड़ा नाम है;आज दिन अवध के रईसो मे आपका औवल दरजा है।बड़े सेठ साहब सीधे-सादे बनिया आदमी थे,इसलिये उनको वही सोहाता था।अब आपका नाम बड़े-बड़े ताल्लुकेदारो और रईसों में है।आपकी रप्त-जन्त और इज्जत बहुत बढ़ी है।नित्य का आना-जाना ठहरा,एक-न-एक तकरीब,जल्से और दरबार हुओं ही करते है। तब आप वैसा सब सामान न कीजिएगा,तो किस तरह बाप-दादों की इज्जत और अपने खानदान की बुजुर्गी कायम रख सकिएगा?" दूसरा बोला-"जी हाँ हुज़र,बहुत ठीक है। सामान तो सब तरह का इकट्ठा