पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/३६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३५
छठा प्रस्ताव

घराने में कौन-कौन नए केडे हैं। उन्हें किसी-न-किसी तरह

अपने ढंग पर चढ़ाय खातिरखाह गुलछरें उड़ाया करता, जब देखा, अब यहाँ कुछ सार न रहा, तो निर्गधोज्झित पुष्प के समान उसे त्याग भ्रमर के समान दूसरा ठौर ढूँढ़ने लगता । इस क्रम से इसने न जानिए कितने कुलप्रसूत नई उमर- वालों का शिकार कर अमीर शिकारी के फन मे पूरा उस्ताद हो रहा था। इन बाबुओं को तो इसने ऐसा फंसा रक्खा था कि इसके विना उन्हे एकदम चैन न पड़ती, मानो दोनो बाबुओं का यह बसंता सर्वस्व हो गया था। और, यह ऐसा चालाक था कि जिस ढंग पर चाहता काठ के खेलौने के माफिक दोनो को दुलकाता फिरता । हम पहले लिख आए हैं कि यह पढ़ा-लिखा न था, तब हबशियों के-से इसके मोटे- मोटे होठों पर बड़े-बड़े और चौड़े दांतों को देख "क्वचिदन्ता भवेन्मूर्ख" सामुद्रिक के इस लक्षण में कचित् शब्द की चरितार्थता मानो इसी के लिये रक्खी गई थी ; बड़े दॉत- वाले कोई मूर्ख देखे गए, तो यही। दूसरे इसकी कंजी ऑखें साखी दे रही थी कि कदर्यता इसमें किस दर्जे तक पहुंची हुई है। पाठक, आप बसंता से भरपूर परिचय कर रखिए, अभी आपको इससे बहुत काम पड़ना है, क्योंकि हमारे इस किस्से के कई एक नायक प्रतिनायकों में चंदू का प्रतिनायक यही होता रहेगा। चंदू-सा सुपात्र, भलामानुस और बसंता के समान नटखट कुपात्र कहीं बिरले पाओगे।