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सौ अजान और एक सुजान


है। नौकर-चाकर तथा और सब लोग, जो इनके पास नित्य के आनेवाले थे, इन्हें उदास और बुझामन देख मन-ही-मन अनेक तरह के तर्क-वितर्क करने लगे। पर इनकी उदासी का कारण न जान सके।

इसी समय चंदू दूर से आता हुआ देख पड़ा। पंडि- ताई, नेकचलनी और पल्ले सिरे का खरापन इसके चेहरे पर झलक रहा था। इसकी गंभीरता और सागर-समान गुफ- गौरव में स्वच्छ उदार भाव मानो लहरा रहा था। इन बाबुओं की भलाई और खैरख्वाही इसे दिल से मंजूर थी। लल्लोपत्तो, जाहिरदारी और नुमाइश की ज़रा भी गुंजाइश इसके मिजाज में न पाय दुनियादारों की इसके सामने कुछ न चलती थी। जो लोग बाबुओं को फॅसाय अब तक बेखटके लूट-मार खा-पो रहे थे, उनके जी में खलबली-बैठ गई। कानोकान कहने- लगे-"क्या है, जो यह मनहूस-क़दम आज फिर यहाँ देखा पड़ा । इसके सामने अब हम लोगों की एक भी न चलेगी। बड़ी मुश्किलों से इसका पैरा यहाँ से बह गया था। क्या सबब हुआ, जो बाबुओं को आज इसकी फिर चाह हुई ?" चंदू को आता देख बाबू उठ खड़े हुए। इसके पॉव छू, हाथ पकड़ अलग कमरे में ले गए, और मना कर दिया कि यहाँ कोई न आवे । यहाँ बैठ इधर-उधर की दो-एक और बातें कहने के उपरांत चंदू बोला-

"बाबू, अब तुम्हे इन साथियों की परख हुई होगी। ये सब