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पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/६

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भूमिका

(छठे संस्करण पर)

स्वर्गीय पं० बालकृष्ण भट्ट वर्तमान युग की हिंदी के जन्मदाताओं में से एक समझे जाते हैं, और भारतेदु बाबू हरिश्चंद्र के समकालीन साहित्यकारों मे उनका ऊँचा स्थान है। भट्टजी के पूर्व-पुरुष मालवा-देश के निवासी थे, किंतु कारण-वश वे बेतवा नदी के तट पर जटकरी-नामक ग्राम में आ बसे। पं० बालकृष्ण भट्ट का जन्म संवत् १९०१ में हुआ था। इनकी माता बड़ी पढ़ी-लिखी और साहित्यानुरागिणी थीं। इसीलिये भट्टजी की शिक्षा-दीक्षा का प्रारंभिक रूप ही सुंदर बन गया, और थोड़े समय मे ही उन्हें पर्याप्त विद्या-ज्ञान की प्राप्ति हुई। कुछ बड़े होने पर भट्टजी के पिता ने यह चाहा कि उनकी रुचि व्यवसाय की ओर आकर्षित की जाय, परंतु ऐसा न हो सका। हमारे चरितनायक विद्याध्ययन की ओर से अपना ध्यान न हटा सके, फिर माता का आदेश भी उनके अनुकूल था। इस प्रकार १५-१६ वर्ष की आयु तक भट्टजी संस्कृत और हिदी की शिक्षा प्राप्त करते रहे।

सन् १८५७ के सिपाही-विद्रोह के पश्चात् भारतवर्ष में क्रमशः अंगरेज़ी-भाषा का प्रचार बढने लगा। माता की प्रेरणा से भट्टजी ने भी अँगरेज़ी पढना शुरू किया, और एक मिशन स्कूल में एंट्रेस-क्लास तक शिक्षा पाई। स्कूल के पादरी से कुछ धार्मिक विवाद हो जाने पर भट्टजी ने स्कूल को तिलांजलि दे दी, क्योंकि उनकी धार्मिक भावनाओं को आघात पहुँच चुका था, और वह पुनः संस्कृत