जिसे जो सूझा-तदवीरें कर रहे थे कि हकीमजी को साथ लिए नदू भी आया, और बोला-"हकीमजी, इस जून आपके उस अर्क की ज़रूरत है, जो आपने एक बार मुझे दिया था। जनाब, अर्क क्या है सजीवन मूल है, देखिए, कैसा तुर्त-फुर्त आपको राहत होती है।" हकीम बोला- "जनाब-आली, मुझे क्या उजर है। अल्लाहताला आपको सेहत दे।" उसके पहले नींद की दवा दी जा चुकी थी, औघाई आ रही थी कि इसी समय हकीम का वह अर्क भी दिया गया। अर्क पीने के बाद ही बाबू को नीद आ गई, रात-भर खूब सोया किए।
दूसरे दिन नंदू फिर आया, और बाबू को चगा देख बोला-"भैया, अब तक तो मैं जब्त किए था, कुछ नहीं कहता-सुनता था. आपको वह पंडित किसी समय ऐसा धोखा देगा कि जन्म-भर पछताते रहेंगे। ये अंडित-पंडित गॅवर- दल होते हैं । ये हम लोगो की शाइस्तह जमात में कभी कदर पाने लायक हो सकते हैं ? उस अहमक ने तो कल आपकी जान ही ली थी। यह तो कहिए, हकीम साहब कल आपके लिये ईश्वर हो गए, जान बचाई. नही तो कुछ बाकी रह गया था ? हकीम साहब बड़े काविल आदमी हैं। मैं कहाँ तक उनकी तारीफ करूं। अब तो आपसे उनसे सरोकार हो चला है। दिनोंदिन ज्यों-ज्यों उनसे लगाव बढ़ता जायगा, आप उनकी सिफतों को पहचानेगे । खैर, आपको सेहत हो गई।