पृष्ठ:सौ अजान और एक सुजान.djvu/६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
६३
ग्यारहवाॅ प्रस्ताव


कमरा था, जिसकी दीवारें चटकीली सुफैदो पुती ऐसी घुटी हुई थीं, मानो संगमरमर की बनी हों। और, यह कमरा इस ढंग से आरास्ता था कि इसमें थोड़ी ही अदल-बदल करने से अॕगरेजी ढंग का उमदा ड्राइंगरूम भी हो सकता था। बाहर से देखनेवाले समझते होंगे कि यह मकान बराबर ऐसा ही पुख्ता, वसीह और सुथरा होगा, किंतु इस बघमुॕहे मकान में यह कमरा ही सबकी नाक था । इस कमरे के पीछे पॉव रखते ही ओकाई आने लगती थी, और दुर्गध से नाक सड़ जाती थी।

हम पहले कह पाए हैं, हीराचंद के समय जो अनंतपुर काशी और मथुरा का एक उदाहरण था, वह इन बाबुओं के जमाने में दिल्ली और लखनऊ का एक नमूना बन गया । कुछ अरसे से इस मकान में एक ऐसे जीव आ टिके थे, जिनकी हुस्नपरस्तों के बीच उस समय अनंतपुर में धूम थी । यह कौन थे, कहाँ से आए थे, और कब से यहाँ आकर बसे थे, कुछ मालूम नहीं, न यही कुछ पता लगता कि किस वसीले से.यहाँ अनंतपुर-ऐसे छोटे कस्बे में यह आ रहे । यद्यपि दिल्ली, लखनऊ, कलकत्ता, बबई, लंदन, पेरिस आदि बड़े-बड़े नगरों में ऐसे जीवों की कमती नहीं है, हिंदू, मुसलमान, पारसी, यहूदी, कश्मीरी, आरमीनी, अॕगरेज इत्यादि हरएक क़ौम और जाति मे एक-से-एक चढ़-बढ़ के खूबसूरती और सौंदर्य में एकता हुस्नवाले सैकड़ों मौजूद