करते-करते अव संकीर्णता में आने लगे। कहा है-भक्ष्य- माणो निराधानः क्षीयते हिमवानपि" संचय न किया जाय, और रोज उसमें से ले-लेकर खर्च हो, तो कुबेर का खजाना भी नहीं ठहर सकता, तब बड़े सेठ हीराचंद की संपत्ति कितनी और कै दिन चलती। जिस तालाब में पानी का निकास सब ओर से है, आता एक ओर से भी नही, तो उसका क्या ठिकाना। बाबुओं को अब खर्च का तरद्दुद हर जून रहा करता था, और इसी चिता में रहते थे कि किसी तरह कही से कुछ रकम हाथ लगे। अस्तु ।
अनंतपुर मे नंदू के मकान से सटा हुआ कच्चा-पक्का एक दूसरा घर था । चूना-पोती कबर के माफिक यह घर बाहर से तो बहुत ही रॅगा-चुंगा और साफ था, पर भीतर से निपट मैला, गंदा और सब ओर से गिरहर था । अब थोडा इस घर के रहनेवाले का भी परिचय बिना दिए हमारे प्रबंध की शृखला टूटती है । यह घर बाहर से जो ऐसा रॅगा- चुॅगा और भीतर श्मशान-सा शून्यागार था, इसका कुछ और ही मतलब था। और, वह मतलब आपको तभी हल होगा, जब आप मालिक मकान से पूरे परिचित हो जायॅगे। मालिक मकान महाशय को आप कोई साधारण जन न समझ रखिए। फितनाअंगेजी और उस्तादी मे यह बड़े-बडे गुरुओं का भी गुरू था । अनंतपुर के सब लोग इसे उस्तादजी कहा करते थे। हमारे पढ़नेवाल नदू के चाल-चलन और शील-स्वभाव से