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सौ अजान और एक सुजान

रमा बहू को भी, स्त्री की जाति हैं, मुट्ठी में करते क्या लगता था । इसलिये इसे चंदू से मेरे जी में हर तरह पर खटका है, क्या जानिए यह एक दिन मेरी सब चालाकी बाबू . के जी में नक्श करा दे। खैर, देखा जायगा; अब तो इस समय हीराचंद की कुल दौलत और राज-पाट सब मेरे हाथ में है, अभी तो जल्द बाबू का वह नशा उतरनेवाला है नहीं, तब तक में तो मै कुल दौलत सेठ के घराने की खींच लूॅ गा; पीछे से ये दोनो लड़के होश मे आ ही के क्या करेंगे।

सच है, धूर्त और कुटिललोगों की कार्रवाई का लखना बड़ा ही दुर्घट है । कोई निरालाही तत्त्व है, जिससे वे गढ़े जाते हैं। ऐसों की जहरीली कुटिल नीति ने न जानिए कितनों को अपने पेच में ला जड़-पेड़ से उखाड़ डाला । इसलिये जो सुजान हैं, वे ही उनकी कुटिलाई के दॉव-पेंच से बचे हुए अपनी चतराई के द्वारा दूसरों को भी अँधियारे गड्ढे में गिरने से रोक लेते है।


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तेरहवाँ प्रस्ताव

योऽर्थे शुचि:स शुचिर्न मृद्वारिशुचि:शुचि।[१]

यह हम अपने पाठकों को प्रकट कर चुके हैं कि हमारे इस उपन्यास के मुख्य नायक दोनो बाबू बहुत-सा फिजूल खर्च


  1. जो रुपए-पैसे के मामले मे शुद्ध या ईमानदार है, वे ही पवित्र या ईमानदार है।मिट्टी और जल से बार-बार हाथ-धोकर जो अपने कोपवित्र करते हैं, वे पवित्र नही है