जानीयात्" और इसी यत्न में लगा कि किसी तरह से चंपत हो। अस्तु, और सब लोग किसी-न-किसी बहाने वहाँ से खिसकने लगे, पर नंदू की कोई घात निकलने की नहीं लगती थी। इतने में घर से एक दूसरी खबर आई–"सरस्वती बहुत बीमार हो गई है, उलटी साँस चल रही है, जल्दी घर चलो।"
छोटे बाबू की दो वर्ष की लड़की सरस्वती दोनो बाबुओं को बहुत हिली थी। घर में कोई छोटा लड़का न रहने से सब उसे बहुत प्यार करते थे. और वह घर-भर की खिलौना थी। बाबू को दोचंद तरद्दुदुद मे पड़े देख सब लोग बड़े फिकिर में हुए, किंतु नंदू के आकार और चेष्टा से मालूम होता था कि इसे वाबुओं के साथ कोई सहानुभूति नहीं है, केवल अपने बचाव के प्रयन में अलबत्ता लग रहा है । पंचानन, जो कभी बाबुओं के किसी जलसे और नाच-रंग में आज तक शरीक न हुया था, और बाबू के दिली दोस्तों से इसकी जियादह रब्त-जब्त न रहने से अच्छी तरह उनके गुप्त चरित्र और छिपे चाल-चलन से वाकिफ न था, नदू की उस समय की रुखाई से अचरज में आया। यद्यपि पंचानन तरदुद और फिकिर से कोसों दूर हटता था, पर इस समय बावुओ को अत्यंत उदास, व्याकुल ओर चितामग्न देख यह भी सन्नाटे में आ गया। कुछ इस कारण भी कि चदू का, जिसे यह सबसे अधिक मानता था, सेठ के घराने से बहुत लगाव समझ दोनो के साथ इसे,