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स्कंदगुप्त
 

स्कंद्गुप्त कालिदास को न सानने से श्रद्धा बँट जाने का भय इसमें बाधक है। परन्तु पक्षपात और रूढ़ि को छोड़कर विचार करने से यह बात ठीक ही जचेगी । हम ऊपर कह अये हैं कि कालिदास तीन हुए ; परन्तु जो लोग दो ही सानते हैं, वे ही बता सकते हैं कि प्रथम कालिद्ास तो सहाकवि हुए और उन्होने उत्तमोत्तम नाटक तथा काव्य बना डाले, अव वह कौन-सी बची हुईं कृति है जिसपर द्वितीय कबि को * कालिदास ? की उपाधि मिली ? क्योंकि यह सहज ही अनुसान किया जा सकता है कि दूसरे कालिदास की उपाधि * कालिदास ' थो, न कि उसका नाम कालिदास था । जैसी प्राय: ध्रव भी किसी घतमान कवि को, उसकी शैली की उत्तसता देखकर, किसी प्राचीन उत्तम कवि के ताम से संवोधित करते की प्रथा-सी है । अस्तु 1 हम नाटककार कालिदास को प्रथस और ईसवी-पूर्व का कालिदास सानते हैं। (१ ) नाटककार कालिदास ने गुप्तवंशीय किसी राजा का संकेत से भी उल्लेख अपने ताटकों मे नही किया ।1 (२) * रघुबंश * अ्रादि में असुरों के उत्पात और उनसे देवताओं की रक्षा के बण्णन से साहित्य भरा है । नाटकों सें उस तरह का विश्लेषण तहीं । काव्यकार कालिदास का ससय हूरणोँ के उत्पात और श्रातंक से पूणें था । लाटकों से इस भाव का विकास इसलिये तहीं है कि वह शकों के निकल जाने पर सुख-शांति का काल है विदेशी यवसों का हराया जाना भिलता है । यवनों का राज्य उस ससय उत्तरीय सारत से उरड़ चुका था । सालविकाशिसिन्न * में सिधु-तट पर 7 शाकुंतल' में हस्तिना- २८

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