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स्कंदगुप्त वना । अब यह मान लेने में कोई भ्रम नहीं होता कि मातृगुप्त किशोरावस्था में कुमारगुप्त की सभा में था, वही कालिदास स्कंदगुप्त विक्रमादित्य के सहचर थे । कुमारगुप्त का नामाङ्कित एक काव्य भी ( कुमारसंभव ) बनाया । यह बात तो अब बहुतसे विद्वान मानने लगे हैं कि कालिदास के काव्यो में गुप्तवंश का व्यञ्जना से वर्णन है । हूणों के उत्पात और उनसे रक्षा करने के वर्णन का पूर्ण आभास कुमारसंभव में है। स्कंदगुप्त के भितरीवाले शिलालेख में एक स्थान पर उल्लेख है
- क्षितितलशयनीये येन नीता त्रियामा तो 'रघुवंश' में भी-- * सुललितकुसुमप्रवालशय्या, ज्वलितमहौषधिदीपिकासनाथाम् ।
नरपतिरतिवाहयां बभूव क्वचिद् समेतपरिच्छद स्त्रियामाम् - मिलता है। स्कंदगुप्त के शिलालेखों में जो पद्य-रचना है, वह वैसी ही प्राञ्जल है जैसी रघुवंश की-_** व्यपेत्य सर्वान् मनुजेन्द्रपुत्रान् लक्ष्मीः स्वयं यं वरयां चकार इत्यादि में रघुवंश की-सी ही शैली दीख पड़ता है। * स्कन्देनसाक्षादिव देवसेनाम् ” इत्यादि में स्कंदगुप्त का स्पष्ट उल्लेख भी है। और कुमारगुप्त का तो बहुत उल्लेख है । रघुवंश के ५, ६, ७ सर्ग में तो अज के लिये 'कुमार' शब्द का प्रयोग कम-से-कम ११ वार है। विक्रमादित्य के जीवन के संबंध में यह प्रसिद्धि है कि उनको अंतिम जीवन पराजय और दुःखों से भी संबंध रखता है ।
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