पृष्ठ:स्कंदगुप्त.pdf/२४८

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कालिदास
 

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कालिदास थे सर्व बातें आकर एक सूत्र में ऐसी मिल जाती हैं कि दूसरे काव्यकार कालिदास को विक्रम-सखा, दीपशिखा कालिदास को मातृगुप्त मानने में कुछ भी संकोच नहीं होता-जैसा डाक्टर भाऊदाजी का मत है ।। । विक्रमाङ्क के समान भोज के पिता सिन्धुराज की पदवी ‘साहसाङ्क' थी । पद्मगुप्त परिमल ने * नव-साहसाङ्क-चरित' बनायी थी । तञ्जौर वाली ‘साहसाङ्क-चरित' की प्रति मे इनको भी कालिदास लिखा है। बहुत संभव है कि यह तोसरे कालिदास बङ्गाल के हों, जैसा कि बंगाली लोग मानते हैं । ऋतु-संहार, पुष्पबाण-विलास, श्रृंगार-तिलक और अश्वधाटी आदि काव्यों के रचयिता संभवतः यही तीसरे कालिदास हो सकते है । xxxx हमें इस नाटक के सम्बन्ध में भी कुछ कहना है । इसकी रचना के आधार में ऊपर दो मन्तव्य स्थिर किये गये हैं। पहला, यह कि उज्जयिनों का परदुःखभंजन विक्रमादित्य गुप्तवंशोय । स्कंदगुप्त था; दूसरा यह कि मातृगुप्त ही दूसरा कालिदास था, जिसने : रघुवंश' आदि काव्य बनाये। स्कंदगुप्त का विक्रमादित्य होना तो प्रत्यक्ष प्रमाणो से सिद्ध होता है। क्षिप्रा से तुम्बी में जल भरकर ले आनेवाले, और चटाई पर सानेवाले उज्जयिनी के विक्रमादित्य स्कंदगुप्त के ही साम्राज्य के खंडहर पर भोज के परमार-पुरखों ने मालव का नवोन साम्राज्य बनाया था । परन्तु मातूगुप्त के कालिदास होने में अनुमान का विशेष सम्बन्ध है । हो सकता है कि आगे चलकर - "

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