स्टालिन के गुण और अवगुणों सभी को समान रूप मे दिया है। जहां वह स्टालिन की क्रांतिकाल की कूटनीतिपूर्ण कार्यावली को विशद शब्दों में उपस्थित करता है, वहां सोवियट रूस और शासन विधान के नाम पर किए गए स्टालिन के अत्याचारों का वर्णन भी उतने भी विस्तार के साथ देता है। इस प्रकार एक निष्पक्ष दृष्टिकोण से लिखा जाने के कारण यह ग्रंथ भारतीय राजनीति के विद्यार्थियों के लिए अत्यन्त उपयोगी बन गया है। जैसा कि प्रकाशक के आत्म-निवेदन से प्रगट है, प्रन्थ के लेखक महोदय हिन्दी संसार के लिए एक दम नवीन हैं । यद्यपि नवीन लेखकों में होने वाले गुण और दोषों से वह नहीं बच पाए हैं, किन्तु एक निष्पक्ष दृष्टिकोण के कारण हमने उनको हिंदी में प्रोत्साहन देना आवश्यक समझा। लेखक ने इस ग्रन्थ को नौ अध्यायों में लिख कर प्रकाशक को दिया था। इस बीच में ट्रॉट्स्की की मैक्सिको में हत्या कर दी गई। अतः हमने यह उचित समझा कि इस ग्रन्थ में ट्रॉट्स्की के चरित्र को भी पूरे का पूरा संक्षेप से दे दिया जावे। अस्तु हमने इस प्रन्थ के दसवे अध्याय 'ट्रॉट्स्की और चतुर्थ अन्तर्राष्ट्रीय' को लिख कर उसमें ट्रॉट्स्की के सम्पूर्ण जीवन चरित्र को संक्षेप से दे दिया। ग्रन्थ के रूस की वर्तमान राजनीति से दूर होने के कारण प्रस्तावना में उसके सम्बन्ध में भी संक्षेप से विचार कर लिया गया। आशा है कि पाठक इस प्रन्थ से पर्याप्त लाभ उठा कर हमारे परिश्रम में भाग लेंगे। देहली 'चन्द्रशेखर शास्त्री २०-१०-१९४०
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